Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 172
________________ अनूठा उपाय १५७ सोचता रहा । उसे लगा कि मदन मोहन मालवीय जी के पास पहुँचने पर कोई श्रेष्ठ उपाय निकल आएगा। वह मालवीय जी के पास पहुँचा। उन्हें नमस्कार कर अपनी सारी स्थिति से अवगत कराया और पूछाऐसा उपाय बताइये जिससे मेरी स्थिति सुधर सके और बाजार में मेरी इज्जत बनी रह सके। मालवीयजी कुछ क्षणों तक सोचते रहे फिर बोले-मित्रवर! उपाय ही बहत सुन्दर है, पर मुझे लगता है तुम्हें पसन्द नहीं आएगा । श्रेष्ठी की आतुरता बढ़ गई। उसने कहा यदि है तो बताने का अनुग्रह करें। ___ मालवीयजी ने मधुर मुसकान बिखरते हुए कहा-आप ऐसा करें, काशी विश्वविद्यालय को सिर्फ पाँच लाख रुपये दान दे दीजिए। श्रेष्ठी ने उपाय सुनकर अपनी घबराहट रोकते हुए कहा-यह कैसा विचित्र उपाय है ? रुपयों की तो यहाँ पहले से ही कमी चल रही है। फिर ऐसी स्थिति में पाँच लाख रुपये किस प्रकार निकाल सकता हूँ। मालवीयजी ने दृढ़ता से कहा-जहाँ कहीं से भी निकालिए । श्रेष्ठी ने चुटकी लेते हुए कहा-विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से जो दुआएं निकलेंगी उससे Jain Education InteFoatinate & Personal usev@ņainelibrary.org

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