Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 164
________________ ईमानदार राजभक्त १४६ किया ! अधिकारीगण उनकी आज्ञा की अवहेलना करते हैं। हजरत उमर ने उसी समय उस अधिकारी को अपने पास बुलाया और पूछा-तुमने रात को कार्य क्यों नहीं किया ? __ अधिकारी का सिर नीचे झुक गया। उसने निवेदन किया—शुक्रवार की रात्रि को मैं कार्य नहीं कर पाता। इसलिए मैं विवश हैं। हजरत उमर ने पूछा-क्या विवशता थी ? अधिकारी ने कहा--इस रहस्य को गोपनीय ही रहने दिया जाय । इसी में मेरा हित है। हजरत उमर ने कहा-खलीफा के सामने राज्य के अधिकारियों की कोई भी बात गोपनीय नहीं होनी चाहिए। अधिकारी ने धीरे से निवेदन किया-मैं सात दिन तक अत्यधिक व्यस्त रहता हूँ। केवल शुक्रवार की रात्रि को मुझे कुछ अवकाश मिलता है। मेरे पास कपड़ों की केवल एक जोड़ी है। उसे ही सात दिन तक पहने रहता हूँ। शुक्रवार रात्रि को उसे धोकर सुखाता हूँ। यह बात आज तक किसी को भी ज्ञात नहीं है। ज्ञात होने पर मेरा उपहास करेंगे कि इतने बड़े राज्य के अधिकारी के पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं Jain Education InteFoatinate & Personal usev@ņainelibrary.org

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