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गागर में सागर
को यह बताने के लिए कि मैं मुर्दा नहीं, जिन्दा हूँ ज्योंही उसने अपना मुंह खोला त्योंही लकड़ी छूट गई और वह नीचे जमीन पर गिर पड़ा। उसकी हड्डी पसली टूट गई वह जिन्दे से मुर्दा हो गया।
मौन जीवन है और वाचालता मुर्दापन है।
साधक को अधिक से अधिक मौन रहना चाहिए। तथागत बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा-श्रमणो ! जब तुम कभी भी सम्मिलित बैठो तब दो ही बात करनी चाहिए या तो धर्मकथा या आर्य मौन ।
सन्निपतितान वो, भिक्खवे, द्वयं करणीयं, धम्मिया या कथा, अरियोवा तुण्ही भावो।"
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