Book Title: Epigraphia Indica Vol 23
Author(s): Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 275
________________ 208 EPIGRAPHIA INDICA. [VoL. XXIII. 13 दधवलं छत्र इयं केवलं । तस्माना(बा)[]त तद्यथोपि ककुभां प्रांत स्थितां(तं) तक्षणां(क्षणम्) [*] लब्ध(ब)प्रतिष्ठमचिराय कलिं शु(स) दूरमू(सु)14 च्छा(त्सा)र्य शुध(इ)चरितारणीतलस्य [*] [त्वा] पुनः ] कतयुना:(गा)(थ)यम प्यशेषं चित्रं कथं निरुपम: कलिवल (स)भीभूत् [re"] प्राभूधै(३)यंव16 तस्ततो निरुपमादिंदर्यथा वारिधः राहात्मा परमेश्वरीनत शिरःसंसक्तपाद[*] सुतः ॥(1) पनामंदकर प्रतापसहि. 16 तो नित्योदयः सोबतेः पूर्खादेवि भानुमानभिमतो गोविंदराज[:] सतां । [॥१..] यस्मि' सा(स)र्वगुणाश्रये चितिपतौ श्री. _Second Plate ; First Side. 17 राष्ट्रकूटान्वयो जाते यादववंशवंमधुरिपावासीद[लं]ध्यः परैः [*] दृष्टाशावधयः कृता[:*] स्यु(सु)य(स)दृशा दानन येनो[]ता 18 मुक्ताहारविभूषिता स्फुटमिति प्रत्यर्थिनोप्यर्थिनां(नाम्) [११] यस्याकारममानुषं (त्रिभुवनव्यापति(त्ति)रक्षोचितं कृष्णस्येव निरीक्ष्य यच्छति 19 पिते(त)येंकाधिपत्यं भुवः [*] प्रास्तां तात तवैतदप्रतिहता दता(ता) त्वया कण्ठिका किं नाज्ञेव मया धृतति पितरं युक्तं वचो योभ्यधात् [१२] . तमि 20 "[मि] गाविभूषणाय जनके जा(या)ते यशःशेषता"मेकीभूय समुद्यतां वसुमतीसं हारमाधिच्छया" [*] विच्छायां" सहसा व्यधत(त्त) नृपतीन 1 Read * Danda superfluous. - Read परमेशरीवत-- •It would be better to read पनामंदकरः प्रबाप-as in the Radhanpur plates. 'y which was first omitted is written below the line. • What looks like an anusvara on sa may be due to a fault in the plato. - Read यस्मिन् • The engraver at first out but subsequently cancelled the stroke for medlal y • Read वंशवन्मधु"" which was at first omitted, is written below the line. 11 The aruarára here is a little displaced. B Read सम्मिन 1. The engraver first cut for which he afterwards tried to change into without cancelling the curve for medial i and the anusara. Read er. 11 The anusvåra is redundant. » Read समुद्यतान् "Read माधिसया. " Read विच्चायान्

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