Book Title: Dravya Vigyan
Author(s): Vidyutprabhashreejiji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 8
________________ पूर्व-स्वर जैन दर्शन की मान्यतानुसार जो गुण और पर्याय से युक्त है, वही द्रव्य है। वाचक उमास्वाति ने इन्हीं भावों में द्रव्य की परिभाषा गुम्फित की है गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ।-तत्त्वार्थसूत्र ३/८ जो द्रव्य के साथ अविच्छिन्न रूप से सतत् सहभावी होकर रहे, वह गुण कहलाता है एवं अपने मूल स्वभाव का परित्याग न करके भी भिन्न-भिन्न रूपों में परिवर्तित होने वाली द्रव्य की अवस्था विशेष को पर्याय कहते हैं । द्रव्य पूर्वावस्था का परित्याग कर नवीन अवस्था को अवश्य ही प्राप्त हो जाता है फिर भी उसका मूल स्वरूप ज्यों का त्यों सुरक्षित रहता है। उपादान या निमित्त कारणों को प्राप्त कर द्रव्य अपना स्वरूप भले ही परिवर्तित कर ले परन्तु नये द्रव्य का न तो उत्पाद होता है और नही नाश। उदाहरण के लिए स्वर्ण को लें। जैसे सोना एक द्रव्य है, उसे विभिन्न आकृतियों में ढाला जाता है। परन्तु कंगन बने अथवा हार, उसका स्वर्णत्व दोनों ही रूपों में विद्यमान रहता है । यह केवल उदाहरण मात्र है। वास्तव में स्वर्ण भी कोई स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है; वह भी पुद्गल की अनन्त अवस्थाओं में से एक अवस्था है। आज जो पुद्गल स्कन्ध स्वर्ण रूप में हैं, वही भविष्य में स्वर्णत्व का त्याग कर मिट्टी के रूप में परिवर्तित हो सकता है; इसीलिए पुद्गल द्रव्य के जिन लक्षणों को निर्दिष्ट किया गया है, वे वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में भी रहेंगे और मिट्टी में भी।। जिस प्रकार पुद्गल एक द्रव्य है वैसे ही पाँच अन्य द्रव्य हैं, अन्तर इतना ही है कि पुद्गल रूपी (इन्द्रियगाह्य) है जबकि अन्य पाँच धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशस्तिकाय, जीवास्तिकाय एवं काल अरूपी हैं। इन छहों को जीव और अजीव रूप से दो भागों में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। इनमें से जीवास्तिकाय के अतिरिक्त अन्य सभी जड़ हैं। चेतनत्व गुण से युक्त मात्र जीव एक ऐसा तत्त्व है जो स्व और पर के विषय में जानना चाहता है, जान सकता है। स्व से संबन्धित जिज्ञासा से दर्शन का जन्म होता है। आचारांग सूत्र का प्रारम्भ इसी जिज्ञासा से होता है। १. इहमेगेसिं नो सन्ना भवइ,....अत्थि मे आया उववाइए, णत्थि मे आया उववाइए, के अहं आसी, के वा इओ चुओ भविस्मामि?-आचारांग सूत्र १/१-२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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