Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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________________ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ “ दिगम्बर जैन” के तीन उपहारग्रन्थकी वी०पी० होरही हैं। CALORICIRIIRROSO - - LISHARONLINE दिगम्बर जैन (वष १४ व १५ वाँ) वीर सं० २४४७ व २४४८ * अर्थात् सं० १९७७-७८ का वार्षिक मूल्य करीब २ सभी ग्राहकोंसे वसूल आनेका है और इन दो वर्षों के तीन उपहार ग्रन्थ १. श्रवक प्रतिक्रमण ( विधि, अर्थ सहित ) २. बलबोध जैनधर्म ( चतुर्थ भाग ) ३. जैन इतिहस प्रथम माग ( प्रथम १२ तीर्थंकरोंका चरित्र ) तैयार हैं और दो वर्षों का मूल्य वसूल करनेके लिये रु० ।-)की वी० पी० 8 से भेजे जारहे हैं । आशा है सम ग्राहक बी० पी० आते ही मनीऑर्डर चार्म ) सहित ३॥) देकर तुर्त छुड़ा लेवेंगे। जब इन दो वर्षों के सभी अंक आपको मिल चुके हैं तब आपका प्रथम वर्तव्य है कि वी० पी० अवश्य छुड़ा लेवें । इन पीछले दो वर्षों का मूल्य देरसे वसूल करने में हमारा ही प्रमाद कारणरूप है । वर्तमान १६ ३ वर्षमे मी एक ग्रन्थ उपहार में दिया जायगा जो तैयार होने पर इस वका मृत्य भी वसूल किया जायगा । जिन २ ग्राहकोंका मूल्य भागया है है उनको ये ग्रन्थ बुकपेके टसे भेजे जायगे। किसी ग्राहकको हिसाबमें कुछ भूल मालूम हो तो मी वे वी० पी० वापस 2 न करें । जो कुछ भूठ होगी, दूसरे वर्ष के मुख्यमें समन ली जायगी। मैनेजर, दिगम्बर जैन-सूरत ।। ISISTRANSISTRITISASAR

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