Book Title: Dharmaratnaprakaranam
Author(s): Shantisuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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॥ अहम् ॥ ॥शासनसम्राटूश्रीमविजयमेमिथरीश्वरपादपोम्पो नमः॥ विशुलचम्द्रकुलाम्बरनिशाकर श्रीशान्तिमरिसकृतितं स्वोपरिपाहिलं
धर्मरलप्रकरणम्। सिद्ध सर्वज्ञमानम्य वक्ष्ये सक्षेपतः स्फुटाम् । विवृत्ति धर्मरत्नस्य मन्दबुद्धिप्रबुद्धये ॥१॥ इह हि हेयौपादयादिपदार्थपरिज्ञानमलिना विज्ञातासारसंसारापॉस्पारावारपतितजन्तुसन्तानानपरतदुःखसन्तान जन्मजसमरणरोगशोकादिदुःखदौर्गत्यातिपीडितेन भव्यजन्तुनम स्वर्गापवर्गादिसुखश्रीसेपदिनावन्ध्यनियन्धन जिनाममहारबमुपादातमुचिवम् । तदुपादानोपायच गुरूपदेशमन्तरेण नावबुध्यते । न चानुपायप्रवृत्तानामभीष्टसिद्धिः। इत्यतः कारुण्यपुण्यचेतस्तया धर्माधियां | धोपादानपालनोपदेशं दातुकामः प्रकरणकारः शिष्टमार्गानुगामितया पूर्व तावदिष्टदेवतानमस्कारप्रदेशतिपादनाय गाथामाहममिऊण यलगुणरयणलहरे बिमलकेवलं वो। धम्मरयणस्यमाणं जणाण किमि उपल
इह पूर्थिनिएदेवसानमस्कारद्वारण विषिमायकोपशान्तये मालाताखन चनिषेवमिति । चन्यायोबचेच.सार ध्यमम्थे । तया हि-संवधरताबदुपरियोपेक्सया, साध्यसाधक्षणो वा । तब अकरमपाक साचा । साध्याहन का
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