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Ends. - fol. 184
Jaina Literature and Philosophy
कुवलयमाला
No. 157
[156.
महीयलि सोहइ गुणगण भूरि 'उवप (ए) स' गच्छि श्रीश्री कक्काभूरि । पालह (संयम) निरतिचार गुरु गुरुया गोयम गणधार । ५४
नवरस भवियण दिहं उबएस ।
शीयल वषाणइ अति सविसेस |
तासु प्रसादिहं कवियण ( इम) कहि ।
की प्रबंध भवियण भंग्रहड ।। ५५ ।। शील हिव जंबूकुमार । थूलिभद्र गोयसा गुणधार ॥ बाहुबलि स (सु) कोसल सीह । सेठि सुदर्शन सोहइ धुरि लिह । ५६ सालिभद्र कुलध्वज अनुदिन || ए मुनि चउत्रिह संघ प्रसन्न । मही 'मेरु' जगि दीप इसार । तां जिनशासनि जयजयकार ।। ५७ ॥ सील तणा गुण जाणि एह || भणइ गुणइ नरनारी जेह । अलीय विधन सविनासहं दूरि । जय मंगल हुई भरपूरि ॥ ५८ ॥ इति श्रीशीलविषये श्रीकुलध्वजकुमर (रा) स संपूर्ण ॥
Reference. For extracts and additional Mss. see Jaina Gurjara Kavio ( Vol. I, p. 92 & Vol. III, Pt.1, pp. 521-523).
Kuvalayamālā 154. 1881-82.
Size— 12‡ in. by 4g in.
Extent. - 133 folios ; 17 lines to a page 74 letters to a line. Description. Country paper thin, rough and greyish; Jaina
Devanagari characters with frequent gears; small, quite legible, uniform and beautiful hand-writing ; borders ruled in four lines in black ink; red chalk used; mostly all the foll. numbered in the right hand margin only ; fol. 64 in both the margins; in the left-hand margins