Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
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Jaina Literature and Philosophy
[232.
Begins- fol. 10 ए६० ॥ श्रीसदगुरुभ्यो नमः ॥
पहिली डाल वधावणु । जांमोती अधिकार ॥ जम राजारी कुमरीः । सीलवती सुषमाल ॥१॥ सीलसरोवर सुंदरीः । रूपे अधिक रसाल ।।
ते जांबोती जांणीये | सपरणे किसन मुरार ॥२॥etc. Ends.- fol. 140
जांभवतीजा मगने गया । कलिंमै रह्या श्रीदीनदयालक । सूरो(र)सागर इम भणे । म्हे गुण गाया रावले परसादक ॥५७९०॥
इति श्रीजंबवतीरी चोपई संपूरणं ॥ संबद १८३५रा वर्षे मासोत्तमपोषमासे शुक्लपक्षे २ तिथो शनिधारे लिषतं माहारीपकिसोरचंदजी
चेला तिलोकचंद ॥ श्रीरस्तुः ॥ कल्याणमस्तुः ।। श्री ।। सुश्राधका पुन्यप्रभाविकदेवगुरुभकतकारकाधरममूरतवटुंजीमैनांजीपठनार्थः ॥ श्री ॥
लिपज पोथी प्रेमसुः मुनिराज हितकारः।
मुषजयणाकर वाचस्यो ता करस्यो परओपगारः ॥१॥ is Reference.- For extracts and additional Mss. see Jaina Gurjara
Kavio ( Vol. III, pt. 2, p. 1217).
10
20
जावडिकथा -
Jāvadikathi No. 238
1310 (14).
1886-92. Extent.-ol. 12s to fol. 14'.
1310(a). Description.- Complete. For other details see No. 33
1886-92. Author.- Jayānanda Sūri. Subject.- A story of Javadi. Begins.-- fol. 12° ॥५०॥ : श्री कंडल पुरे राजा । परमाराभिधो()भवत् ।
श्रेष्ठी च जिनदत्ताख्यो । नेमदत्तसुतः पधी ॥ १ ॥ etc. Ends.- fol. 14 . :- इति प्रारंभनिर्वाहप्रवणायै नरोत्तमा।
ते विडिन्द्वीप | अत्रामुत्र एखास्फदं ॥५॥ ... इति जावडिकथा । भीजयानदसारिकताः ॥२॥
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