Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
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Jaina Literature and Philosophy
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भीनाभिरायांकुलतिलो आदीसर अरिहंत चरण नमुं हुं तेहना । भयभंजण भगवंत ॥१॥ etc. भागातम गणधर प्रमुख जिनदत्त कुशल सूरि(रों)द सद्गुरु बलि संनिध करो गिरुवा 'मेरु' गिरिंद ॥ ५॥ etc. भबियाण धनानो सुणो । कहुं चरित संषेवि ।
तास कथा मुणतां थकां | हवे आणंद नितमेव ॥ ७॥ etc. Ends.- fol. 500
हरिकीरती मोटा यतीए मुनिवर माहमांवत म. उत्कष्टी किरीवा करे ए शीलवंत गुणवंत म० १२ राजहरषगणि हितकरूप रतनहरष सविचार म° . सदा सुप संपजे ए राजलाभगणि इम कहे ए मन धर हरप अपार सदा० १३ जीवराजआग्रह करी ए प्रभण्यो एह पंचार स० सदगुरुने सुपसाउले ए गांम वुणा मझार । स०॥१४॥ महामुनीसर गावतां ए पमि सुप सतान
....। उडवरंगवधामण ए दिनदिन बधनो यांन स०.१५. । तीजो पंड पूरोहयो.ए. न(त)णो गुणे नर जेहस.. घर बैठा संपद मिले ए मनचंछित लहे तेह स ० १६ . कहै कहावे जे वली ए सांभलि जे ये दान स०।
राजलाभगणि इम कहे ए तिहां घर नवे य निधान । स०१७॥
इति श्रीधनासालभद्रचोपई संवत् १९०५ मिति माद्रवा पदे १ Reference.-- For an additional Ms. see Jaina Gurjara Kavio
(Vol. III, Pt. 2, p. 1232).
२०.
३, घम्मिलचरित्र
Dhammilacaritra ....
614. _No. 300
1875-76. Size,-21 in. by 4in. Extent.— 77 + 1 = 78 folios ; 15 lines to a page ; sa letters to
aline.
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