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The Svetambara Narratives
बालब्रह्मचारी हूवी ईंण सम अउर न कोई रे ॥ नाम जपता हनो मनछति सुष होइ रे ॥ २ ॥ जं० ॥ आज दिवस धनि माहरो आज सफल अवतारो रे ॥ चिंतामनी सुरतरु फल्यौ मै गुण गाया इक तारो रे ॥ ३ ॥ जं० ॥ परिशिष्ट पर्व (थ) ऊधरिड एह सहू अधिकारो रे ॥
केवलग्यानीयहं भाषीयो इहां कूड नही लगारो रे ॥ ४ ॥ जं० ॥ सरदहिजो सुधइ मनै मत करिज्यो कोइ संदेहो रे ॥ संदेह करिसइ जे सहा (ही) ते दूरगति लहे निसंदेहो रे ॥ ५ ॥ जं० ॥ संवत्त सतरिसे चाधोतरे (१७१४) काती मास उदारों रे ।।
सुकल पक्ष तेरसि दिने ए कीयो चरित सुविचारो रे ॥ ६ ॥ जं० ॥ सरसा 'पाटण' परगड जिहा श्री आदिजिनंदो रे ॥ तेह तणे परसादथीं ग्रंथ कीयो आणंदा रे ॥ ७ ॥ जं० ॥ श्री खरतरगच्छराजीयो श्रीजिणसिंहसरंदो रे ॥ गच्छ चोरासी सेहरो हुया जाणि दिणंदो रे ॥ ८ ॥ जं० ॥ पातसादि अकबर राजितइ 'कासमीर' देश मझारो रे ॥ अमारी पलावी तिहां कणह सर्व जीवां हितकारो रे ॥ ९ ॥ जं० ॥ (?) स चोपडे रवी समो। चांपसी सुत्त सिरदारो रे || चांपलदे धन जनमियो। पुरुषरतन गणधारो रे ॥ १० ॥ जं० ॥ तसु. पाटे सुरतरुसमा । श्रीजिनरा जसुरीसो रे ॥
सकलपाटप्रभाकर दीपतो । जाणे विसवा वीसो रे ॥ ११ ॥ जं० ॥ तसु लघु बंधव दीपती । पद्मकीरति सुषकारो रे ॥
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तासु सीस गुणे बिलौ । आगमना भंडारो रे ॥ १२ ॥ जं० ॥ चवद विद्या करी सोभता । महिमा 'मेर' समानो रे ॥ पदमरंगगुरु चिरंजीवो। जां लगि ध्रु ससि भानो रे ॥ १३ ॥ जं० ॥ पदमरंग मुनिवर के है | ए संबंध रसालो रे ||
जे नरनारी सांभलै | तिहां घ (र) घार मंगलमालो रे ॥ १४ ॥ जं० ॥ वर्त्तमान गच्छराजीयो । श्रीजिण चंदसुरिंदो रे ॥
कीरति महीयल बिस्तरी । प्रणमै नरना वृंदो रे ॥ १५ ॥ जं० ॥
सेह ते वारे करी । चोपईं मोहनषेला रे ॥
चतुरंगन मोहण भणीं । कीधी मननी केलो रे ॥ १६ ॥ जं० ॥ rini | हीयै लीलाविलासे । रे ।
सांभलतां रिद्धि सिद्धि हवइ । सफल होवे मन आसो रे ॥ १७ ॥ जं० ॥ नरनारी भो (भा) करी । जे प्रणमै निसदीसो रे ॥
इणि भव जस सोभा लहै । बलि प्रभवे सब जगीसों रे ॥ १८ ॥ जं० ॥
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