Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 351
________________ 5 10 15 20 25 ॐ 316 Jaina Literature and Philosophy - fol. 84 इति श्रीसम्पक्त्वाधिकारे जयविजय कुंअरप्रबंधे निजगृहानिर्गमन - विजयराज्याप्तिवर्णनो नाम प्रथमोऽधिकारः || [235 -- fol. 14° इति up to प्रबन्धे followed by गतवस्तुद्वयप्राप्तिवर्णनो । नाम द्वितीय (S/धिकार (:) 1 - fol. 220 इति up to प्रबन्धे followed by बांधवद्वय मिलननिज गृहागमन(खं) त्रयसाधनो नाम तृतीयो ( 5 ) धिकारः संपूर्ण (:) ॥ ३ ॥ Ends.- fol. 30 LC E satishमासूत्रवृत्तिमां ए अधिकार बष्याण्यो रे तिहांथी जोईनि महं सघला ईहां ए संबंध आण्यो रे ४ स जीभ तणई बसिओ बनुं अधिकउं जे इहां भाष्युरे श्रीसंघर्ष तेह तणो हुं मिच्छा मि दोक्कडुं भाष्णुं रे ५ सं० ग्रंथागर अनुमानें कीधो सात सया पंचवीसो ( ७२५) रे । लवी लबाची साधु सुभावक सुणतां अधिक जगीसो रे ।। ६ ।। सं० संवत सतर चोतरीसा ( १७३४ ) वरसे नयर ' दसाडा' मांहिं रे । रास रच्यो मई समकित उपरि श्रीशांतिनाथसुपसाई रे ॥ ७ ॥ सं० 'तप' गच्छनायक सूरिशिरोमणि श्रीविजयप्रभसूरिरायो रे । पुण्यप्रतापी जस जाग व्यापी सकलसुरिसवायो रे ॥ ८ ॥ सं० श्री कल्याण विजयवाचकना सेवक श्रीधनं विजय उवज्झायो रे । तस बांधव श्री विमलाविजय बुध नाम नव निधि थायो रे ॥ ९ ॥ सं० तस सीस पंडित माहि सोहई की त्तिविजय बुधरायो रे । तस सेवक इणी परि बोलई ए सुणतां संपद थायो रे ॥ १० ॥ सं० भाई गण जेह सांभलइ नांव निधि होइ तस गेहिं रे । जिनविजय कहिं सांभलो ए अधिकार सनेहिं रे ॥ ११ ॥ इति श्री सम्यक्त्वाधिकारे जयविजय कुंआरप्रबधे उपसहन सिद्धिगमनों नाम चतुर्थी ( s)धीकार संपूर्णः ग्रंथाग्रंथ ७२५ संवत् १७७४ वर्षे आसो दि १३ गुरुवारें महोपाध्यायश्री १०५ श्री इंद्र सोभाग्यगणिशिष्य पंडितभी श्री. वीरसौभाग्य गणिशिष्य मुनिप्रेमसाभाग्येन लिखिता (S) स्ति श्री 'सुहाला ' ग्रामे Reference. For extracts and additional Mss. see Jaina Gurjara Kavio ( Vol. II, pp. 297-299 & Vol. III, pt. 2, p. 1289 ).

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