Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 03
Author(s): P D Navathe
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 270
________________ Jyotiṣa श्रुतानां मुखात् योगधिगमो ज्ञानं तत्परिपाद्याविदुषा मात्सर्य विहाय कार्य मग्रंथो न नाशनीयः शोधनीयश्चेत्यर्थः ॥ ९॥ शास्त्रावसाने सतां वतिमार्ययाह || दिनकरेति । नवे वसिष्ठादिमुनीनांमादित्यदासस्य च चरणानत्या कृतः प्रसादो नैर्मल्यं यस्या इंडशी मतिर्यस्य तेन मयेदं शास्त्रमुपक्षितं । तस्मात्पूर्वप्रणेतृभ्यः पूर्वशाकर्तृभ्यो नतिरस्तु ॥ १० ॥ इति श्रीमहीधरकृते बृहज्जातकविवरणे उपसंहाराध्यायः षड्विंशः संवत् १७६८ ॥ वर्षे माहाघमासे कृष्णपक्षे तिथौ १२ गुरुवासरेण लिखितं दु. धनेश्वरसुतदुवे जयनंदत्रिघाडी श्रीसर्वेश्वरजीनी पुस्तक है | शुभं भवतु ॥ श्रीरस्तु ॥ श्रीकल्याणमस्तु ॥ श्रीकृष्ण सहाय ॥ श्री ॥ छ ॥ श्री ॥ . References - Mss. A - Aufrecht's Catalogus Catalogorum :- i, 3750; ii, 848, 2134; iii, 80. Subject Begins बृहज्जातकविवरण No. 802 Size - 12g in by 44 in. Extent -- 101 leaves 11 lines to a page; 34 letters to a line. ३५ Description - Samvat 1897. Age - Author - Mahidhara. 259 B - Descriptive Catalogues :- R. Mitra, Notices No. 2453; Ulwar Mss. Cat. No. 1873; B. B. R. A. S. Cat. No. 369. - Rough country paper; Devanagari characters; old in appearance; handwriting bold but sometimes not quite clear; also not uniform; borders not ruled; yellow pigment used for corrections; white chalk also used; red pigment used for headings and colophons; occasional marginal notes; complete. A Commentary on Bṛhajjātaka. Jyotisa. - fol. 10 Bṛhajjātakavivaraṇa श्रीगणेशाय नमः श्रीहरिर्विजयतेतरां । 882 1891-95

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