Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 03
Author(s): P D Navathe
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 294
________________ jyotiga 283 Subject - A part of Sakalyasamhita. Begins-fol. 10 श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ध्यानयोगामनारूढं ब्रह्माणं त्रिजगद्गुरुं ॥ भभीवाद्य सुखासीनो नारदः मर्मपृच्छत ॥१॥ देवदेव जगनाथ सर्वज्ञ कमलासन । ज्योतिषां चरितं ज्ञानं ब्रूहि कालाशयं महत् ॥ २॥ भधीतमखिलं छंदः स्थाणू संप्रतीयते ॥ अंगैर्विना यथैवांगी तस्मादेतत्प्रसीद मे ॥३॥ इत्येवमुक्तो विश्वात्मा नारदेन महर्षिणा ॥ पुत्रेण धीमता प्रीत्या वाक्यमेतदभाषत् ॥ ४ ॥ etc. fol. 15a इति शाकलसंहितायां द्वितीयप्रश्ने श्रीब्रह्मसिद्धांते द्वितीयोध्यायः ॥ छ । Ends-fol. 29a ग्राहकाढेन तदिबं स्थानं चेत्स्पर्शमोक्षयोः ॥ निमीलनोन्मीलनयोर्विद्या ग्राहणमीप्सितं १ अध्वांतत्वाविधोः सूर्यगृहणं कृष्णमेव तु ॥ द्वांतछादकमिंदो यद्विशेषोस्ति विधौ ततः १२ धूम्रं कृष्णं क्रमाकृष्णं कृष्णताम्र विनिर्दिशेत् ॥ किंचिदूनाधिकैः पादै छन्नं कपिलमेव तत् १३ यदेवं यस्य कस्यापि रहस्यं शास्त्रमुत्तमं ॥ एतद्देयं सुशिष्याय उनूवत्सरवासिने ॥ १४ ॥ इति शाकलसंहितायां द्वितीयप्रश्ने ब्रह्मसिद्धांते षष्ठोध्यायः॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु References - Mss. -A-Aufrecht's Catalogus Catalogorum :- I, 383b; il, 151b. See Bhar. Jyo. pp. 188-90. Mr. Dikshit says that the work must have been composed after Saka743 i.e. A.D.821. p. 189. B - Descriptive Catalogues :- 1. O. Cat. Nos. 2784 87%; Mad. Des. Cat. No. 13463%B B. B.R.A.S. No.821.

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