Book Title: Dashvaika Sutram
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 482
________________ दशवैका ० हारि-वृत्तिः ॥ २४० ॥ Jain Education In | वेश्यादीनां कामार्थमेवाभ्यासवृत्त्यादि यथाक्रमं सर्व कुर्वन्ति प्रेष्याश्च भयेन खामिनामिति, उक्तौ कामभ यविनयौ, मोक्षविनयमाह - 'मोक्षेऽपि' मोक्षविषयो विनयः 'पञ्चविधः' पञ्चप्रकार: 'प्ररूपणा' निरूपणा तस्यैषा भवति वक्ष्यमाणेति गाथार्थः ॥ ३१४ ॥ ३१५ ॥ दंसणनाणचरित्ते तवे अ तह ओवयारिए चेवं । एसो अ मोक्खविणओ पंचविहो होइ नायव्यो । दव्वाण सव्वभावा उवइट्ठा जे जहा जिणवरेहिं । ते तह सद्दहइ नरो दंसणविणओ हवइ तम्हा ॥ नाणं सिक्खइ नाणं गुणेइ नाणेण कुणइ किञ्चाई । नाणी नवं न बंधइ नाणविणीओ हवइ तम्हा || ३१६ ॥ अट्ठविहं कम्मचयं जम्हा रित्तं करेइ जयमाणो । नवमन्नं च न बंधइ चरित्तविणओ हवइ तम्हा || ३१७ ॥ अवणे तवेण तमं उवणेइ अ सग्गमोक्खमप्पाणं । तवविणयनिच्छयमई तवोविणीओ हवइ तम्हा || ३१८ ॥ अह ओवयारिओ पुण दुविहो विणओ समासओ होइ । पडिरूवजोगजुंजण तह य अणासायणाविणओ ॥ ३१९ ॥ पडिरूवो खलु विणओ काइअजोए य वाइ माणसिओ । अट्ठ चउब्विह दुविहो परूवणा तस्सिमा होइ ॥ ३२० ॥ अट्ठाणं अंजलि आसणदाणं अभिग्गह किई अ । सुस्सूसणमणुगच्छण संसाहण काय अट्ठविहो । ३२१ ॥ हिअमिअअफरुसवाई अणुवीईभासि वाइओ विणओ । अकुसलचित्तनिरोहो कुसलमणउदीरणा चैव ॥ ३२२ ॥ व्याख्या- 'दर्शनज्ञानचारित्रेषु' दर्शनज्ञानचारित्रविषयः 'तपसि च' तपोविषयश्च तथा 'औपचारिकश्चैव' प्रतिरूपयोगव्यापारश्चैव, एष तु मोक्षविनयो- मोक्षनिमित्तः पञ्चविधो भवति ज्ञातव्य इति गाथासमासार्थः ॥ For Private & Personal Use Only ९ विनय समाध्यध्ययनम् विनय भेदाः २ उद्देश ॥ २४० ॥ Oainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574