Book Title: Dashvaika Sutram
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 544
________________ C दशवैका० हारि-वृत्तिः १रतिवाक्यचूला० CCCCCCCCC रिआ गिहीणं कामभोगा २, भुजो अ साइबहुला मणुस्सा ३, इमे अ मे दुक्खे न चिरकालोवटाई भविस्सई ४, ओमजणपुरकारे ५, वंतस्स य पडिआयणं ६, अहरगइवासोवसंपया ७, दुल्लहे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहवासमझे वसंताणं ८, आयंके से वहाय होइ ९, संकप्पे से वहाय होइ १०, सोवक्केसे गिहवासे निरुवक्केसे परिआए ११, बंधे गिहवासे मुक्खे परिआए १२, सावजे गिहवासे अणवज्जे परिआए १३, बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा १४, पत्तेअं पुण्णपावं १५, अणिच्चे खलु भो ! मणुआण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले १६, बहुं च खल्लु भो! पावं कम्म पगडं १७, पावाणं च खलु भो! कडाणं कम्माणं पुटिव दुच्चिन्नाणं दुप्पडिकंताणं वेइत्ता मुक्खो , नत्थि अवेइत्ता, तवसा वा झोसइत्ता १८ । अट्ठारसमं पयं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो'इह खलु भोः प्रव्रजितेन' इहेति जिनप्रवचने खलुशब्दोऽवधारणे स च भिन्नक्रम इति दर्शयिष्यामः, भो ॥२७१॥ Jain Education Interch For Private & Personal Use Only Clainelibrary.org

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