Book Title: Dangvopakhyanam
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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्लोक।। उर्द्धबाहुःशतंराजञ्च्छतंभूम्यासनंघतं षट्शतंचमहाराजनचासनंजितवान्मुनिः // 11 // टीका-दे राजन् ए जे मुनि तेतो सर्व ईंद्रिओने जितिने सो वर्ष | सुधी तो उर्धबादु रह्या, अने सो वर्षसुधी तो प्रथ्वी उपर एक आसने निची द्रष्टी करीने बेठा अने एक हज्जार वर्षसुधी तो निश्चळपणाबडे तो महा उग्र तप कर्यु. 11 ॥श्लोक॥ तदासहस्रकंजातंवर्षाणांजन्मेजय तपोधूमस्तदाजातआकाशेगतवान् नृप // 12 // टीका-तदनंतर बिजां सहस्त्र वर्ष उग्र तप थयु ते तपवडे करीने तपनो धुमाडो अाकाश सुधी चालवा मांड्यो. // 12 // ॥श्लोक॥ एवंतपःकृतंतेनशंकरांशनयाकृशं दारुणंचमहाघोरंवर्णितुंनैवशक्एते 13 // टीका-हे जन्मेजय, शंकरांश एवा जे दुर्वासा मुनि तेमणे एप्रकारे उग्र तप कर्यु ए तपनुं वर्णन करवाने कोइ शक्तिबान नथी. 13 ॥श्लोक // तदाकलेवरंखिन्नंश्रुष्कमांसंमुनीश्वरे पंचैतेईंद्रीयाण्येवास्त्रियोनूत्वासमागताः॥१४॥ टीका-ते समयने विशे मुनिश्वरनुं सुश्क मांस खेद पामवा योग्य थयुं अने इंद्रियो स्त्रिरुप थइने सामी आवी. 14 ॥श्लोक॥ प्रबोध्यमुनीशार्दूलंजर्जरीभूतकायकं // ऊचुस्ताईद्रीयाण्येवक्रोधेन जन्मेजय // 15 // टीका--जर्जरिभूत छे काया ते जेमनी एवा मुनिश्वर तेने बोध करवा For Private and Personal Use Only

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