Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand

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Page 132
________________ (१३) ॥ इति गुणस्यानक घार ॥ अथ एकवीसमुं आहारधार. आहार त्रण प्रकारना डे ओजाहार, रोमाहार अने प्रक्षेपाहारतेमां ओज-तैजस शरीर, तेणे करीने जे आहारले तेनु नाम ओजाहार अर्थात् जीव परनवे जतां प्रयमसमये तैजस अने कार्मण शरीरवमे औदारिक शरीर योग्य पुजगलनो आहार करे अने बीजा समययीमांमी, कार्मण साये औदारिक मिश्र कायवमे थाहार करे ते, शरीर पर्याप्ति पुरी थाय त्यां सुधीजे थाहार ते सर्व ओजाहार जाणवो.लोमा. हार स्पर्शेखिये करीने जीवजे आहार पुद्गल ग्रहण करे तेनुं नाम लोमाहार जेमके-तेलादिक शरीरे चोळवाथी अंदर गरमी तथा चिकाश आदि श्रावे अथवा उष्ण काळने विषे पाणीना स्पर्शवमे एटले न्हावाथी अगर नीनू कपहुं शरीर उपर राखवायी शीतळ पणाएकरी तृषा गरमी अने दाह विगेरे उपशमे एम जे स्पर्श प्रियवमे थाहार ते लोमाहार जाणवो. प्रक्षेपाहार जे कोळीया विगेरे करी कोगमा

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