Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand
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(१७०) स्थिति अंतर मुहुर्तनी अने उत्कृष्ट त्रण पढ्योपमनी कही बे, नरदेवनी जघन्यस्थिति सातसेंवरसनी अने उत्कृष्ट चोरासीलाखपूर्वनीकहोने, धर्मदेवन जघन्यस्थिति अंतरमुहुर्तनी अने उत्कष्ट देशे उणी पूर्वक्रोम वरसनी कही बे, देवाधि देववी जघन्य स्थिति बहोंतेर वरसनी अने उत्कृष्ट चोरासीलाख पूर्वनी कही अने नाव देवनी जघन्य स्थिति दशहजारवरसनी अने उत्कृष्ट तेत्रोससागरोपमन। जाणवी. अव्य देवचवीने देवता थाय, नरदेव चवीने नरके जाय अथवा कोश्क चारित्र ग्रहण करी स्वर्गे अथवा मोके पण जाय डे, धर्म देवचवीने वैमानिक अथवा मोकमां जाय रे देवाधिदेव चवीने मोके जाय अने नावदेव चवीने बादर पृथ्वीकाय, अपकायने वनस्पतिकाय तथा गर्नज मनुष्य अने तिर्यचमां जाय . सर्वथी योमा नरदेव होय, नरदेवयी देवाधी देव संख्यात गुणा, देवाधि देवथो धर्म देव संख्यात गुणा, धर्म देवयी अव्यदेव असंख्यात गुणा अने ऽव्य देवग्री नावदेव असंख्यात गुणा जाणवा.

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