Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand
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( १०१ ) सुक्ष्मसपरायचारित्रवाळा, सुक्ष्म पराय चरित्रवाळाथी परिहार विशुद्धि चारित्रवाळा संख्यातगुणा, परिहारविशुद्धि चारित्रवाळाथी यथाख्यात चारित्र - वाळा संख्यात गुणा, यथाख्यात चारित्रवाळाथी बेदो पस्थापनिय चारित्रवाळा संख्यात गुणा अने बेदो पस्थापनिय चारित्रवाळाथी सामायिक चारित्रवाळा जीवो संख्यातगुणा लाने इति अल्पबहुत्व. ए प्रमाणे उगणीशद्वारे संक्षेपे करीने पांच चारित्रकां. ॥ इति संजतिद्वार ॥ पथ साडी समुं जराउद्वार..
जराज - वेदनी-ते वे प्रकारे वे जरावेदन । ने शोक वेदनी ते सर्व संसार जीवोने होय. शरीरे करीने जे वेदाय ते जरावेदनी ने मने करीने जे वेदाय ते शोकवेदनी जावी,
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नारकी नोएकद्रुक, देवताना तेरदमक, गर्भज तिर्यचनो एक दमक, अने गर्भज मनुष्यनो एक दंक एम सोल दंगकना जीवोने एक जरावेदनी ने बीजी शोकवेदनी एम बे वेदनी होयडे,

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