Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand

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Page 207
________________ (ए) कडं बे. एवा दश कोमाकोमी सुमक्षेत्र पस्योपमे एक सुदमत्र सागरोपम थाय. ए पठ्योपम तथा सागरोपमे करी त्रसादिक जीवोनुं परिमाण कर एम कडं . त्रण प्रकारना सुक्ष्म पट्योपमनुं प्रयोजन शास्त्र ने विषे ले अनेत्रण प्रकारना बादर पक्ष्योपम कहां तेतो फक्त सुक्ष्म पथ्योपमना सुखावबोध थवा माटे कह्यां ने तेनुं कांश बीजुं प्रयोजन शास्त्रने विष नथी. दश कोमाकोमी पस्योपमे एक सागरोपम थाय दश कोमाकोडी सागरोपमे एक उत्सीणी अने दश कोमाकोमी सागरोपमे एक श्रवसीणी थाय, एक उत्सhणी अने एक अवसपीणी मळीने वीस कोमा. कोमी सागरोपमे एक काळचक्र थाय. अनंताकाळ चके एक पुजल परावर्तन. थाय. एवा अनंता पुनस परावर्तनो, जीवे समकित अणफरस्या अतिक्रम्या माटे तत्वरुचीरुप शुइ समकितवमेजला प्रकारे ज्ञान दर्शन चारित्र पाराधी अनंत सुखनुं धाम मोक्षने माटे प्रयत्न करवो ते जीवने श्रेयस्कर . ... ॥ इति प्रकीर्णधार. ॥

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