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( १९० ) देश की संज्ञा ने ३ दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा घणा काळनी वात जाणे एटले त्रिकालिक वस्तुनुं जाणपणुं ते दीर्घकालिक नामे संज्ञा जाणवी. पोताना शरीर रणने इष्ट वस्तुमां प्रवर्त्ते ने हित वस्तुथी निवर्ते तेनुं नाम हितोपदेशिकी संज्ञा जाणवी. द्वादशांगीना जणनार सम्यग् द्रष्टि श्रुतज्ञानने जे जाणे तेनुं नाम प्रष्टिवादोपदेशी की संज्ञा जाणवी.
जुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी ने वैमानिक ए देवताना तेर रुक तथा तिर्यचनो एक दंरुक ने नारकीनो एक दंक एम पंदर दंरुके, एक दीर्घका लिकी संज्ञा होय कारणके था अमुक काम कर्यु, अमुक काम करूं हुं, ने अमुक काम करीश एम
तित, अनागत ने वर्तमान ए त्रणकाल विषयिकनुं जा पहुंबे माटे ते दीर्घकालिकी संज्ञा जाणवी. बेइंद्रिय, तेइंडियाने चौरिंडियना दंगके जीवोने एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय वे, कारण के एमने नाव मन बे माटे कांइक मनोज्ञान सहित वर्तमान काळने विषे इष्ट वस्तुनी प्रवृत्ति ने अनिष्ट वस्तुनी