Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand

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Page 200
________________ (११) निवृत्ति रुप जाण पणुं होय तेथो तेने हितोपदेशिकी संज्ञा जाणवते. पृथ्वीकायादिक पांचे एकेंशियना दंमके जीवोने एके संझा होय नहि, कारणके एमने एकज काय योग माटे संज्ञा रहित जाणवा. म. नुष्यना दंगके जीवोने दीर्घ कालिकी संज्ञा होय तथा कोइएक सम्यगदृष्टि, चौदपूर्वघरजीवोने बोजी दृष्टिवादो पदेशिकी संज्ञा पण होय . हितोपदेशिकी संज्ञा दीर्घकालिकी संज्ञाने विषे अंतर्जूतडे. ॥ इति संझीकार ॥ .. अथ एकताळीसमुं प्रकीर्णधार. जीवोना शरीरादिकना माप जे अंगुलेथी पामी एते अंगुलादिकनुं स्वरुप तथा जीवोना आयुष्य जे पक्ष्योपम सागरोपमादिकना कह्यांचे ते पत्योपमअने सागरोपमनुं स्वरुप संदेपथी कहे . . - एक आत्म अंगुल, बीजं उत्सेघांगुल अने त्रीजुं प्रमाण अंगुल एम अंगुल त्रण प्रकारे बे,तेमां जे काळे जे क्षेत्रेजेटबु मनुष्यनुं अंगुलहोय तेअंगुलप्रमाणने यात्म अंगुल कयु .यात्म अंगुले नगर, गाम, कुवा, तळाव,

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