Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand
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(१७०) नक होय, सुक्ष्मसंपरायचारित्रे दशमु गुणस्थानक होय अने यथाख्यात चारित्रे अगियारमुं, बारमुं, ते रमुं तथा चौदमुं एम चारगुणस्थानक कह्यांबे. इति गुणस्थानक. सामायिक अने बेदोपस्थापनिय चारित्रवाळा जघन्य एकन्नव अने उत्कृष्टा आठ जव करे अने बाकीना त्रण चारित्रवाळा जघन्य एक नव अने उत्कृष्टा त्रणनव करे. इति नव. सामायिक चारित्र एकनवमां जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट नवसें वार आवे, वेदोपस्थापनियचारित्र एक भवमा जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट एकसोने वीसवार थावे परिहार विशुहि चारित्र एक नवमां जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट त्रणवार यावे, सुदम संपराय चारित्र एक जवमा जघन्य एकवार अने उत्कृष्ट चार वार आवे अने यथाख्यात चारित्र एक नवमां जघन्य एकवार ने उत्कृष्ट बे वार आवे जे एम कथु . शति आकर्ष, पहेलेथी चार चारित्र सुधीमां एक क्षयोपशमन्नाव लाने अने यथाख्यात चारित्रने विषे उपशमन्नाव अने दायिकए वे नावलाने. इतिनाव. सर्वथी थोमा

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