Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand

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Page 178
________________ ___ (१६५) साने. मनुष्यमांहे पुरुषवेदे नव मोटी पदवी तथा सेनापति, गाथापति, वार्धिक अने पुरोहित एम तेर पदवी लाने, मनुष्यमांहे स्त्रीवेदे समकीतनी, श्रावि. कानी, साध्वीनी, केवळीनी अने स्त्री रत्ननो ए पांच पदवीलाने. ॥ इति संपदा हार ॥ श्रथ पांत्रीसमुं देवधार. देव-१ ऽव्यदेव, १ नरदेव, ३ धर्मदेव, ४ देवाधिदेव थने ५ नावदेव . मनुष्य अथवा तिर्यच पंचेंजियजीवोमांधीजेने देवतानुं आयुष्य बांध्यु डे ते श्रावतानवे देवपणे उपजशे एवा जे जीवो तेने उव्यदेव कहीए.चौद रत्न, नवनिधानजेहने होय तेने नरदेव कहीए. साधुना सत्तावीस गुणे करी सहित होय तेहने धर्म देव कहीए. बार गुणे सहित, अ. ढार दोष रहित तथा चोत्रीस अतिशय, पांत्रीस वाणीना गुण ए विगेरे अनंत गुणे करीने सहित धमना प्रवर्तक होय तेने देवाधिदेव कहीए. चारनिकायना देवोनेनाव देव कहीए. अन्य देवनी जघन्य

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