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( १३० ) प्रकारना जाणवा. स्थावरनामकमोंदयेकरी जे स्थिर रहे एटले पोतानी शक्तिए हाली चाली शक नहि ते स्थावराने त्रसनामकर्मोदये जीवनस प्रणुपामे हालीचालीशके तडकेथी बांए थावे ते त्रस. एवं एकत्रसयनेवी जास्थावरमळी सर्व संसारीजीवना वे दथायडे, पुरुष, स्त्री ने न. पुंसक वेदनी अपेक्षाए त्रण भेद, नारकी, तिर्यच, म नुष्य ने देवगतिएकरी चारभेद, एकेंद्रिय, बेई. प्रिय, तेइंद्रिय, चौरिंडिय तथा पंचेंद्रिय मळी इंद्रियो नी अपेक्षाए पांच ने पृथ्विकाय, अप्पूकाय, तेजकाय, वाकाय वनस्पतिकायने त्रसकाय एम कायनी अपेक्षा सर्व संसारी जीवोना व भेद का बे. १ सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्ता, २ सूक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्ता, ३ बादर एकेंद्रिय पर्याप्ता, ४ बादर एकेंद्रिय पर्याप्ता, थं बेइंद्रिय अपर्याप्ता, ६ बेइंडिय पर्याप्ता, तेइंद्रिय अपर्याप्ता तेइंद्रीय पर्याप्ता, ए चौरिं प्रिय अपर्याप्ता १० चौरिंडिय पर्याप्ता, ११ संज्ञी पचेंद्रिय अपर्याप्ता १२ संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ता, १३ संज्ञी
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