Book Title: Dandakadik Dwar Sangraha
Author(s): Saubhagyashreeji
Publisher: Umedchand Raichand
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(२५) नज मनुष्य अने जलचर एम सोलनेदमाहेथीश्रावी उपजे. नरकने विषे अपर्याप्ता जीवो जाय नहि ए प्रकारे नारकीना दंमके आगति कही. ___दशजुवनपति, सोल व्यंतर, पंदरः परमाधामी अने दशतिर्यग्जूनक ए एकावनजातिनादेवोनेविषे एकसोने एक क्षेत्रना गर्नज मनुष्यपर्याप्ता, पांचग
जतियेच पर्याप्ता अने पांच असंझी तिर्यच पचेंजिय एमएकसोनेअगियार नेदमांदेथी जीव आवी उपजे. दश प्रकारना ज्योतिषी अने सौधर्म एम अगियार जातीनां देवोने विषे पंदर कर्मचूमिज गर्नज मनुष्य, त्रीस अकर्मनुमिज गर्नजमनुष्य अने पांच गर्नज तिर्यच एम पचास नेदमाहेथी जीवो आवी उपजे. बीजा शान देवलोकने विषे पंदरकर्ममि, पांचहरि वर्ष, पांच रम्यक, पांचदेवकुरु ने पांच उत्तरकुरु एवं पांत्रीस देत्रना गर्नज मनुष्यो तथा पांचगर्नजतिर्यच एम चालीश नेदमाहेथी जीव आवो उपजे. पहेला किल्वीषिया जातिना देवोने विषे पंदर कर्मजुमि,पाँच सत्तरकुरुने पांच देवकुरु एवं पचीस क्षेत्रना गर्नज

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