Book Title: Choubis Tirthankar Part 02
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 5
________________ चक्रवती भरत विजय प्राप्तकर शिविर वापिस आ गये । सेना दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में विजय प्राप्त करने चलते-चलते चक्रवती भरत विजयाध पर्वत के ने हर्ष ध्वनि से समस्त आकाश गुंजायमान कर दिया। फिर कि बाद राजा भरत उत्तर दिशा की ओर चले। पास पहुंचे। सेना को रूकवाकर मंत्रों की दक्षिण दिशा के राजाओं को वश में करने के लिए प्रस्थान अब उनकी सेना अत्यधिक बढ़ गयी थी। क्यों आराधना में लग गये। कुछ समय बाद वहां का किया। अनेक देशों के राजाओं को अपने आधीन बनाते हए कि मार्ग में मिलने वाले अनेक राजा मित्र होकर देव राजा भरत से मिलने के लिए आया। सम्राट भरत इष्ट स्थान पर पहुंचे। मनोहर वन में सेना को अपनी-अपनी सेना लेकर उन्हीं के साथ मिल प्रभो ! मैं विजयार्ध नामक देव हूं। मैं व्यन्तर रूकवाकर वैजयन्त महाद्वार से दक्षिण लवणोदधि में प्रवेश जाते थे। उनकी जय ध्वनि सुनकते ही शत्रु हूँ, आपको आया देखकर सेना में उपस्थित |किया बारह योजन दूर जाकर उसके अधिपति व्यन्तर देव राजाओं के दिलं दहल जाते थे। हुआ हूँ। आज्ञा कीजिए हर तरह से आप को पराजित कर वापस आ गये। का सेवक हूँ। Das जब समस्त विजयार्ध पर हमारा अधिकार हो चुकेगा तभी दक्षिण भारत की दिग्विजय पूर्ण कहलायेगी। TAIN समस्त सेना सहित प्रस्थान कर विजयार्ध गिरि इस प्रकार सम्राट भरत की सेना सभी दिशाओं के राजाओं को जीत कर आगे बढ़ी जा रही थी। उनका सेनापति की पश्चिम गुफा के पास आये सेना ने वन में हस्तिनापुर के राजा सोमप्रभ का पुत्र जयकुमार था। वह बड़ा वीर बहादुर व निर्मल बुद्धि वाला था। उसने घूमशिविर डाल दिया। वहां के अनेक राजे उपहार घूम कर समस्त क्लेच्छ खण्डों में चक्रवर्ती भरत का शासन प्रतिष्ठित किया। अब चक्रवर्ती भरत समस्त सेना लेकर उनसे मिलने आये। उत्तर विजया का सहित मध्यम खण्ड को जीतने चल पड़े। उनके दो म्लेच्छ राजाओं ने सामना किया। उन्होंने नाग देवों का स्वामी कलमाल टेव श्री स्वागत के लिए आगया आह्वान किया। नागदेव मेघों का रुप बनाकर समस्त आकाश में फैल गये। मुसलाधार जल बरसाने लगे। ALI MVWWW जैन चित्रकथा

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