Book Title: Choubis Tirthankar Part 02 Author(s): Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 8
________________ जब दूत संदेश सुनाकर मौन हो गया। तब कुमार बाहुबली ने | कहते कहते कुमार बाहुबली की गम्भीरता उत्तरोतर बढ़ती गई तब उन्होंने मृदुहास्य सहित कहा। साध! तुम्हारे राज राजेश्वर, गंभीरता से कहा। तम्हारा राजा भरत बहत अधिक मायाचारी अत्यधिक बुद्धिमान प्रतीत होते हैं। उन्होंने अपने संदेश में एक प्रतीत होता है। उसके मन में कुछ अलग है एवं संदेश कुछ अन्य ही भेज रहा ही साथ साम, दान व विशेषकर दण्ड एवं भेद का कैसा अनुपम है। यदि दिग्विजय सम्राट भरत सचमुच में सुरविजयी है तो फिर कुशा के आसन समन्वय कर दिखलाया है। पर बैठ कर उनकी आराधना क्यों करता था और यदि उसकी सेना अजेय थी तो म्लेच्छों के साथ समर में लगातार सात दिन तक क्यों कष्ट उठाती रही? हमारे पूज्य पिताजी ने मुझे एवं उसे समान रूप से राजपद का अधिकारी बनाया था। फिर उसके RANA राजराजेश्वर शब्द का प्रयोग कैसा ? MOS डाकOM कQOQOTO कहते कहते कुमार बाहुबली की गम्भीरता उत्तरोतर बढ़ती गई तब उन्होंने गंभीरता से कहा। अन्तिम उत्तर देते समय बाहुबली के ओंठ कांपने लगे थे, आंखें लाल हो गयी थी- उन्होंने दूत से कहा- क्या सचमच तम्हारा राजा चंकी या कुम्हार है? उसे चक्र घुमाने का खूब अभ्यास है, इसलिए वह अनेक पार्थिव घड़े बनाता रहता है, चक्र ही उसके जीवन का साधन है। उससे जाकर कहदो। यदि तुम अरिचक्र का संहार करोगे तो जीवन जल से हाथ धोना पड़ेगा। मेरे सामने से दूर हो जाओ। तुम्हारा सम्राट भरत संग्राम स्थल में मेरे सामने ताण्डव नृत्य कर अपना 'भरत' नाम सार्थक करे। मैं किसी तरह उसकी सेवा स्वीकार नहीं कर सकता। NWA O) . दूत चला गया बाहुबली ने युद्ध के लिए सैना तैयार की। चौबीस तीर्थकर भाग-2Page Navigation
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