Book Title: Choubis Tirthankar Part 02
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 28
________________ जयवर्मा को युद्ध के लिए चिन्तित देख कर अजितसेन ने कहा- ऐसा कहकर युवराज ने हिरण्यक देव का स्मरण किया। शीघ्र ही वह दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से भरा रथ आप मेरे रहते जरा भी चिन्ता न कीजियेगा। मैं इन गीदडो लेकर युवराज के पास आ गया। युवराज अजितसेन उस रथ पर सवार हए हिरण्यक देव चतराई। को अभी मार भगाये देता हूँ। पूर्व रथ चलाने लगा। विद्याधरेन्द्र धरणीध्वज एवं कुमार अजितसेन का जमकर युद्ध हआ। अन्त में कमार ने उसे मार गिराया। उसकी समस्त सेना भाग खड़ी हुई। कार्य पूरा होने पर धूम धाम से नगर में प्रवेश किया। कुमार की अनुपम वीरता देककर समस्त नगर वासी हर्ष से फूले न समाये। AAORN राजा जयवर्मा ने शुभ मुहूर्त में युवराज के साथ शशिप्रभा का विवाह कर दिया। CLAWAR फिर कुछ दिनों बाद अयोध्यापुरी वापस पिता अजितसेन ने वधु सहित आये| कुछ समय बाद राजा अजितंजय ने दीक्षा ले ली। युवराज को पिता के वियोग से पुत्र को बड़े उत्सव के साथ नगर में प्रवेश किया। पुत्र के वीर कार्यों को सुन बहुत दुख हुआ। संसार की रीति का चिन्तवन करके सामान्य हो गये। मंत्रिमंडल कर माता-पिता बहुत हर्षित हुए। ने युवराज का राज्याभिषेक कर दिया। उधर मनिराज अजितंजय को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। इधर अजितसेन की आयुधशाला कें चक्ररत्न प्रकट हुआ। पहले पिता के केवल्य महोत्सव में गये, फिर वहां आकर दिग्विजय के लिए गये। उस समय उनकी सेना लहराते हुए समुद्र की तरह प्रतीत होती थी। सेना के आगे चक्ररत्न चल रहा था। क्रम से उन्होंने समस्त भरत क्षेत्र को आधीन कर लिया। जब चक्रधर अजितसेन दिग्विजयी बनकर वापिस लौटे, तब हजारों मुकुटबद्ध राजाओं ने उनका स्वागत किया। राजधानी अयोध्या में आकर महाराज अजितसेन न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करने लगे। YAVAN चौबीस तीर्थकर भाग-2

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