Book Title: Choubis Tirthankar Part 02
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 32
________________ भगवान श्री शीतल नाथ जी।। पुष्कर द्वीप के वत्स देश में सुसीमा नगरी के राजा पद्मगुल्म साम, दाम, दण्ड एवं भेद, इन चार नीतियों से पृथ्वी का पालन करते थे। उनका निर्मल यश सम्पूर्ण प्रदेश में फैला हुआ था। वे अत्यन्त प्रतापी होकर भी साधु स्वभावी पुरूष थे। एक बार बसन्त आगमन पर सपरिवार वसन्तोत्सव मना रहे थे। नृत्य संगीत आदि के मनोहारी उत्सव मनाये गये। बसन्त केदो माह कब बीत गये। राजा को उसका पता भी नहीं चला। जब धीरे-धीरे वन से बसन्त की शोभा विदा हो गई। ग्रीष्म की तप्त लू चलने लगी। तब राजा का ध्यान उस ओर गया। वहां उन्होने बसन्त की प्रतीक्षा की पर उसका एक भी चिह्न नहीं दिखाई दे रहा था। यह देख कर राजा पद्मगुल्म का हृदय विषयों से विरक्त हो गया। उन्होंने सोचासंसार के सब पदार्थ इस बसन्त की तरह क्षण भंगुर है। मैं चिरंतर समझकर तरह-तरह की रंगरेलिया कर रहा था। आज वही बसन्त यहां दृष्टिगोचर तक नहीं होता। अब न आमों में बौर दिखाई पड़ रहा है एवं न कहीं उन पर कोयल की मीठी आवाज ही सुनाई दी जा रही है। अब मलयाल का पता ही नहीं है। उसके स्थान पर ग्रीष्म की तप्त लू बह रही है। अहो अचेतन चीजों में इतना परिवर्तन । पर मेरे हृदय के भोग-विलासों में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ। खेद है कि मैंने अपनी आयु का बहुत भाग यूं ही बिता दिया पर आज मेरे अन्तरंग नेत्र खुल गये हैं। मैं अपना हित भी ढूंढ सकूँगा? बस मिल गया मन्त्र-हित का मार्ग । वह मार्ग यह है कि मैं अतिशीघ्र राज्य जंजाल से छुटकारा पाकर-दीक्षा कर लूं एवं निर्जन वन में रहकर आत्म भण्डार को शान्ति सुधा से भरलूं। टिकटकos 000 SOC SUALLW AL ऐसा विचार कर महाराज पद्मगुल्म वन से महल वापस आये एवं पुत्र | इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मलयदेश के भद्रपुर नगर में इक्ष्वाकुवंशीय दृढरथ राजा थे। चन्दन को राज्य सौंपकर पुन: वन में पहुंच गये। वहां आनन्द नामक उनकी महारानी का नाम सुनन्दा था। भगवान शीतलनाथ के गर्भ में आने के छह माह पूर्व आचार्य के पास दीक्षा ले ली। आत्म शुद्धि करने लगे। ग्यारह अंगों तक ही देवों ने इनके महल पर रत्नों की वर्षा शुरू कर दी। महारानी सुनन्दा ने रात्रि के पिछले का ज्ञान प्राप्त किया, सोलह भावनाओं का चिन्तवन कर तीर्थकर | प्रहर में सोलह स्वप्न देखे । माघ कृष्णा द्वादशी के दिन पूर्वाषाढ नक्षत्र में सुनन्दा के गर्भ से महापुण्य का बंध किया। आयु के अन्तिम समय में समाधि में स्थित हो भगवान शीतलनाथ का जन्म हुआ। देवों ने मेरूपर्वत पर उनका जन्माभिषेक किया। वहां गये। मरकर पन्द्रहवे आरण स्वर्ग में इन्द्र हए। यही इन्द्र आगे भव में| से आकर भद्रपुर में धूम धाम से जन्म का उत्सव मनाया गया। उनका नाम शीतलनाथ भगवान शीतलनाथ होंगे। रखा गया। राज परिवार में बड़े ही लाड प्यार से उनका पालन हुआ। इनका शरीर सुवर्ण के समान उज्जवल पीतवर्ण का था। युवावस्था में इन्हे राज्य की प्राप्ति हुई। इन्होंने भली भांति राज्य का पालन किया। धर्म, अर्थ, काम का समान रूप से सेवन किया। 30 चौबीस तीर्थकर भाग-2

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