________________
एक दिन राजा अजित सेन गुणप्रभ तीर्थकर से अपना भवान्तर सुनकर विरक्त हो। गये। पुत्र जितशत्रु को राज्य सौंपकर जिनदीक्षा धारण कर ली। अतिचार रहित तपश्चरण किया तथा आयु के अन्त में समाधि पूर्वक शरीर त्याग कर सोलहवें अच्युत स्वर्ग के शान्तिकर विमान में इन्द्रपद प्राप्त किया। वहां संचय कर वह पूर्व घातकी खंड में मंगलावती देश के रत्न संचपुर नगर में राजा कनकप्रभ एवं रानी कनकमाला के 'पद्मनाभ' नाम का पुत्र हुआ। पद्मनाभ बड़ा ही तार्किक विद्वान एवं न्यायशास्त्र का वेत्ता था। उसके बल पौरूष की सब और प्रशंसा हुई थी।
इधर पद्मनाभ ने नीतिपूर्वक राज्य करते हुए अनेक राजकुमारीयों के साथ विवाह किया। जिनमें सोमप्रभा मुख्य थी। काल क्रम से सोमप्रभा के सुवर्षनाभि नाम का पुत्र हुआ। उन सब से पद्मनाभ का गृहस्थ जीवन बहुत सुखमय हो गया था।
जैन चित्रकथा
AaQh
एक दिन कनकप्रभ महाराज महल की छत पर से नगर की शोभा देख रहे । थे। उनकी नजर एक जलाशय पर पड़ी। नगर के बहुत से बैल उसमें | जल पी-पीकर बाहर निकल जाते थे। एक बुढ़ा बैल कीचड़ में फस गया। कीचड़ से बाहर नहीं निकल सका, प्यास के मारे वही तड़पने लगा। उसकी बैचेनी देखकर कनकप्रभ महाराज का हृदय विषय भोगों से विरक्त हो गया। जिससे वे पद्मनाभ को राज्य सौंपकर श्रीधर मुनिराज से दीक्षा लेकर तपस्या करने लगे।
DD
aad
एक बार मनोहर उद्यान में मुनिराज श्रीधर का आगमन हुआ, राजा पद्मनाभ ने मुनिराज के पास पहुंचकर उन्हें साष्टांग नमस्कार किया बाद में मुनिराज से उन्होंने अपने पूर्व भर्ती की जानकारी ली। फिर कुछ दिनों तक शासन करते रहे। अन्त में किसी कारणवश उनका चित्त विषय वासनाओं | से विरक्त हो गया। जिससे उन्होंने अपने पुत्र सुवर्ण को राज्यभार सौंप कर जिनदीक्षा ले ली। मुनिराज पद्मनाभ ने खूब अध्ययन किया। उन्हें ग्यारह अंगों का ज्ञान हो गया । सौलह भावनाओं | का चिन्तवन कर तीर्थकर प्रकृति का बंध कर लिया। आयु के अंत में सन्यास पूर्वक शरीर त्यागकर जयन्त नामक विमान में अहमिन्द्र पद प्राप्त किया। यही अहमिन्द्र आगे भव में अष्टम तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभ होंगे। जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में चन्द्रप्रभ नगर में राजा महासेन राज्य करते थे। रानी लक्ष्मणा के साथ सुख पुर्वक समय व्यतीत हो रहा था। राजा महासेन के महल पर प्रतिदिन अनेक रत्नों की वर्षा होने लगी। देवियां आकर महारानी की सेवा करने लगी। यह सब देखकर | राजा को निश्चय हो गया कि लक्ष्मणा की कुक्षि से तीर्थंकर पुत्र होने वाला है।
27