Book Title: Choubis Tirthankar Part 02
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 19
________________ अंत में सम्मेद शैल के एक शिखर पर विराजमान हए। योगाभगवान श्री अभिनन्दन नाथ जी धारण कर आत्मध्यान में लीन हो गये। चैत्र शुक्ला षष्ठी के जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में मंगलावती देश में रत्नसंचय नामक नगर में वैभव शाली दिन सायकाल के समय मृगशिर नक्षत्र के उदय काल में सिद्धि राजा महाबल राज्य करता था। देवांगताओं से भी सुन्दर रानियों के साथ देवोपम सुख सदन को प्राप्त हुए। देवों ने आकर उनका निर्वाण महोत्सव | भोगते हुए अधिकांश समय व्यतीत हो गया। एक दिन किसी विशेष कारण से उनका मनाया। इनका चिह्न घोड़े का था। चित्त विषय वासनाओं से विरक्त हो गया। जिससे वह अपने पुत्र धनपाल को राज्य देकर आचार्य विमलवाहन के पास दीक्षित हो गया। उन्होंने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, सोलह भावनाओं का हृदय में चिन्तन किया। जिससे तीर्थकर प्रकृति का बंध हो गया। आयु के अन्त में समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर महाऋद्धि धारी अहमिन्द्र हुए। ये ही अहमिन्द्र आगे चलकर अभिनन्दन नाथ हुए। जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अयोध्यानगरी में उस समय स्वयम्वर राजा राज्य गर्भ के दिन पूर्ण होने पर रानी सिद्धार्था ने माघ शुक्ला द्वादशी के दिन करते थे। उनकी महारानी सिद्धार्थी अनुपम सुन्दरी थी। राज दम्पत्ती आदित्य योग एवं पुनर्वसु नक्षत्र में उत्तम पुत्र प्रसव किया। देवों ने नवजात तरह-तरह के सुख भोगते हुए दिन बिताते थे। राजा स्वयम्वर के महल के जिनेन्द्र बालक का मेरुपर्वत पर अभिषेक किया। अयोध्या पुरी में अनेक आंगन में प्रतिदिन रत्नों की वर्षा होने लगी। अनेक शुभ शकुन हुए। जिन्हे | उत्सव मनाये। बालक का नाम अभिनन्दन रखा। देख भावी शुभ की प्रतीक्षा करते हुए राज दम्पत्ति बहुत हर्षित थे। महारानी सिद्धार्था ने रात्रि के पिछले पहर में सुरकुंजर आदि सोलह स्वप्न देखे एवं अंत में अपने मुख में एक स्वेत वर्ण वाले हाथी को प्रवेश करते देखा। प्रात:काल महाराजा स्वयम्वर ने रानी के पूछने पर यह कहाप्रिय आज तुम्हारे गर्भ में स्वर्ग से चयकर किसी पुण्यात्मा ने अवतार लिया है। जो नो माह बाद तुम्हारे तीर्थकर पुत्र रत्न होगा। जिसके बल, विद्या, वैभव के सामने देव-देवेन्द्र भी अपने को तुच्छ मानेंगे। EDE जैन चित्रकथा

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