________________
चक्रवर्ती भरत को अपना अपमान सहन नहीं हुआ, इसलिए उन्होंने क्रोध में आकर भाई बाहुबली के ऊपर सुदर्शन चक्र चला दिया, जो कि दिग्विजय के समय किसी के भी ऊपर नहीं चलाया गया था। पुण्य के प्रताप से चक्ररत्न राजा बाहुबली का कुछ भी नहीं बिगाड़ सका, वह उनकी तीन प्रदक्षिणाएं देकर सम्राट भरत के पास वापस लौट आया। जब सम्राट ने चक्र चलाया था, तब सब ओर से धिक-धिक की ध्वनी आ रही थी। बड़े भाई सम्राट भरत का यह नृशंस व्यवहार देखकर राजा बाहुबली का मन संसार से एकदम उदासीन हो गया।
मेरे चक्र जाओ उसे मारो!
धिक
(धिक
(धिक
AdSNA
मनुष्य राज्य आदि की लिप्सा में कौनकौन से अनुचित कार्य नहीं कर बैठता ? जिस राज्य के लिए भाई भरत एवं मैने इतनी विडम्बना की है, अन्त में उसे छोड़ कर ही चला जाना पड़ेगा।
1000
-05-ORD
ऐसा विचार कर उन्होंने अपने पुत्र महाबली को राज्या सौंप कर जिन दीक्षा ले ली। वे एक वर्ष तक खड़े-खड़े ध्यान मग्र रहे। उनके पैरों में अनेक वन लताएँ एवं सांप लिपट गये थे, फिर भी वे ध्यान से विचलित नहीं हुए। एक वर्ष के बाद उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया। जिसके प्रताप से वे तीनों लोकों को एक साथ जानने व देखने लगे थे। एवं अंत में देहत्याग कर वे इस काल में सबसे पहले मोक्ष धाम को गये। जैन चित्रकथा