Book Title: Choubis Tirthankar Part 02
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 13
________________ सम्राट भरत ने जब व्रती मनुष्यों को बाहर खड़े हुए देखा तो उन्हें दूसरे प्रासुक मार्ग से एक दिन राजा भरत ने रात्रि के पिछले प्रहर में कुछ अन्दुत स्वप्न देखें बुलवा कर उनका यथेष्ट सत्कार किया गृहस्थोपयोगी समस्त क्रिया काण्ड, संस्कार | जिससे वे उद्विग्र से हो गये। स्वप्नों का फल जानने के लिए वे भगवान आवश्यक कार्य आदि का उपदेश देकर यज्ञोपवीत प्रदान किये एवं जगत में उन्हें| आदिनाथ के समवशरण में पहुंचे। 'वर्णोत्तम ब्राह्मण' नाम से प्रसिद्ध किया। भगवान वृषभदेव ने क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र वर्ण आपके रहते हुए भी मैनें अपनी बुद्धि-मंदता से ब्राह्मण वर्ग की स्थापना की की स्थापना की थी, अब राजा भरत ने 'वर्णोत्तम ब्राह्मण' वर्ण की स्थापना की। इस तरह || है, उसमें कुछ हानि तो न होगी? सृष्टि की लौकिक एवं धार्मिक व्यवहार के लिए चार वर्णो की स्थापना हुई थी। SEASO . रात्रि के स्वप्न उन्हें कह सुनाये, उनका फल जानना चाहा।। भगवान आदिनाथ ने दिव्य वाणी में कहा- हे वत्स ! पृथ्वीतल में विहार करने के उपरान्त | हाथी के भार से जिसकी पीठ भग्नद हो गई वत्स ! यद्यपि इस समय ब्राह्मणों की पूजा श्रेयस्करी पर्वत के शिखरों पर बैठे तेइस सिंहों के देखने ऐसे घोड़े को देखने से यह प्रकट होना है कि है। उससे कोई हानि नहीं है, तथापि कालान्तर में का फल- आरम्भ में तेइसतीर्थकरों के समय पंचम काल के साधु तप का भार सहन नहीं वह दोष का कारण होगी। यही लोग कलिकाल में ||में दुर्नय की उत्तपती नही होगी पर दूसरे स्वप्न | कर सकेंगे, सूखे पत्ते खाते हुए बकरों को देखना समीचीन धर्म मार्ग में जाति अंहकार से विद्वेष करेंगे। में एक सिंह बालक के साथ जो हाथी खड़ा| बनाता है कि कलिकाल में मनुष्य सदाचार को छोड़कर दुराचारी हो जावेंगे। देखा है, उससे प्रतीत होता है कि अंतिम तीर्थंकर महावीर के तीर्थ में कुलिंगी साधु अनेक दुर्नय प्रकट करेंगे। HTRA जैन चित्रकथा

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