Book Title: Choubis Tirthankar Part 02
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 7
________________ चक्रवर्ती भरत का जो सुदर्शन चक्र भारत वर्ष की छह खण्ड वसुन्धरा में उनकी इच्छा के विरूद्ध कहीं पर भी नहीं रूका था। वह पुरी में प्रवेश करते समय बाह्य द्वार पर अचानक रूक गया। पुरोहित जी ! क्या बात है? अभी आपको अपने भाइयों को वश में चक्ररत्न कैसे रूक गया? | करना शेष है। जब तक आपके सब भाई यक्षों के प्रयत्न करने पर भी आपके आधीन न हो जायेंगे तब तक तिलभर भी आगे नहीं बढा। चक्ररत्न नगर में प्रवेश नहीं हो सकता। hadinnelonanna अच्छा ! ये बात है। उपहारों के साथ अपने भाइयों के पास चतुर दूत भेजता हूँ। उनको अधीनता स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता हूँ। प्ट आपके भाइयों ने ज्यों ही हमारे मुख से संदेश सुना। त्यों ही उन्होंने संसार से विरक्त हो कर राज्य तृष्णा छोड़कर दीक्षा लेना उचित समझा एवं निश्चय के अनुसार दीक्षा लेने के लिए भगवान आदिनाथ के पास चले गये। |दूत पोदनपुर बाहुबली के दरबार में उपस्थित हुआ। संदेश सुनाया - नाथ ! राजराजेश्वर भरत ने जो कि भारतवर्ष की छह खण्ड वसुन्धरा को विजय कर वापस आये हैं। आपके लिए संदेश भेजा है। प्रिय भाई यह विशाल राज्य तुम्हारे बिना शोभा नहीं देता इसलिए तुम शीघ्र ही आकर मुझसे मिलो क्यों कि राज्य वही कहलाता है जो समस्त बन्धु बान्धवों के भोग का साधन हो । यद्यपि मेरे चरणों में समस्त देव, विद्याधरों एवं सामान्य मनुष्य भक्ति से मस्तक झुकाते हैं, तथापि जब तक तुम्हारा प्रतापमय मस्तक मेरे पास मनोहर हंस की भांति आचरण नहीं करेगा तब तक उनकी शोभा नही है। महाराज भरत ने यह भी कहा है कि जो कोई हमारे अमोघ शासन को नहीं मानता, उनका शासन यह चक्ररत्न करता है। का दूत ने लौटकर उन्हें ऐसा नही करना चाहिए, खैर अब ये राजा भरत से सब अभिमान तो किसी तरह पूरा करना ही है समाचार कह सुनाये। बाहुबली के पास भी चतुर दूत भेजता हूँ। जैन चित्रकथा

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