Book Title: Choubis Tirthankar Part 02
Author(s): 
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 6
________________ सम्राट की आज्ञा से गणबद्ध देवों ने अप्रतिम हुंकार भरी। उसी समय पराक्रमी जयकुमार ने दिव्यधनुष से समस्त नागों को भगा दिया जब नागदेव भाग गये म्लेच्छ राजा हार मान कर सम्राट से मिलने आये । उपहार देकर गये। कुछ दिन चलकर हिमवत पर्वत के समीप पहुंचे चक्र रत्न की पूजा की व अनेक मंत्रों की आराधना करके वज्रमय धनुष लेकर हिमवत पर्वत के शिखर को लक्ष्य अमोघ बाण छोड़ा। उसके प्रताप से वहां रहने वाला देव नम्र होकर राजा भरत से मिलने आया। वहां से लौटकर वृषभाचल पर्वत पर पहुंचे। सम्राट भरत ने वहां पहुंच कर अपनी कीर्ति प्रशस्ति लिखनी चाही, पर उन्हें कोई शिला तल खाली नही मिला। जिस पर किसी का नाम अंकित नही हो । [1000वर @ste वृषभाचल से लौटकर गंगा द्वार पर आये गंगा देवी ने अभिषेक कर उन्हें अनेक रत्नों के आभूषण भेंट किये। फिर विजयार्ध गिरि के पास आये, इसी बिच विद्याधरों के राजा नागिन वन में अनेक उपहार लेकर सम्राट से भेंट करने आये। राजा नमि ने उनके साथ अपनी बहिन सुभद्रा का विवाह कर दिया। अपमा Te WAT Can 3 c2-/ 02121 वहां से चल कर सम्राट भरत कैलाश गिरि पहुंचे। कैलाश गिरि के गगन चुम्बी धवल शिखरों के सौन्दर्य से सम्राट मुग्ध हो गये। 221 प 200 अब तक राजा भरत का हृदय दिग्विजय के अभिमान से फूला न समाता था । अरे यहां तो मेरे से पहले अनेक चक्रवती राजा हो चुके हैं। मेरा यह अभिमान तो झूठा है। www निदान उन्होंने एक शिला पर दूसरे राजा की प्रशस्ति मिटा कर अपनी प्रशस्ति लिखवादी। संसार के समस्त प्राणी स्वार्थ साधन में तत्पर रहा करते हैं। कैलाशगिरि से लौटकर राजा भरत ने राजधानी अयोध्या की ओर प्रस्थान किया। दिग्विजय चक्रवर्ती भरत के स्वागत के लिए अयोध्या नगरी खूब सजाई गई थी। समस्त नगरवासी एवं आस पास के बत्तीस हजार मुकुट बद्ध राजे उनकी | अगवानी के लिए गये थे। अपने प्रति प्रजा का असाधारण प्रेम देख कर सम्राट भरत अत्यधिक प्रसन्न हुए। वे सब लोगों के साथ अयोध्यापुरी में प्रवेश करने के लिए चले। सब लोगों के | आगे चक्र चल रहा था। चौबीस तीर्थकर भाग-2

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