Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ भी सेवा में तदाकार रहना, उनका अपना सहज-स्वभाव था। उक्त श्रेणी की बहनें भारतीय महिला जगत की शिरोभूषण रूप शृंगार हैं । ऐसे परिवार ही धरती पर स्वर्ग का जीवन जीते हैं। . श्री प्रेमचन्दजी धर्मपत्नी को मृत कह कर भूल नहीं गए हैं। उसकी स्मृति में उन्होंने मन्दसौर, वीरायतन में अनेक उदात्त कार्य किए हैं। अपने पितृ भूमि मन्दसौर के चिकित्सालय में श्री बादाम कुवर की पूण्य - स्मृति में एक वार्ड का निर्माण किया है, वहाँ और भी आगे सेवा की माला में कोई भव्य कार्य करने का संकल्प कर रहे हैं। .. प्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन भी श्री प्रेमचन्दजी ने उन्हीं की पुण्य - स्मृति में किया है। सेवा के क्षेत्र में यह उदात्त विचार एवं ज्ञान की सेवा भी प्रमुख है। पथ पर चलने से पूर्व पथ - दर्शन के लिए नेत्र आवश्यक हैं । सत्पथ पर चलने के लिए तो अन्तर्चक्षुओं का उद्घाटन होना अतीव आवश्यक है। अत: श्री प्रेमचन्दजी का यह सत्साहित्य प्रकाशन का कार्य भी सर्वतो भावेन श्लाघनीय है। __मैंने ये कुछ पंक्तियां लिखाई हैं, उसकी पृष्ठभूमि में 'गुणिषु प्रमोदं' की मात्र उदात्त भावना ही है। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा का एक अविस्मरणीय विचार सूत्र है __ भवन्ति भव्येषु हि पक्षपाता: -भव्य जनों के प्रति उनके सत्कर्मों के प्रति प्रमोद का भाव रखना ही चाहिए । यही प्रमोद - भाव है, जो जनता में सद्गुणों के प्रचार का एक दिव्य हेतु है । आशा है, तटस्थ चिन्तन - वृत्ति के जिज्ञासु प्रस्तुत पुस्तक से अवश्य ही वैचारिक लाभ उठाएंगे और एक अच्छे भाव से किए गए कर्म को स्मृति में रखते हुए स्वयं भी यथाप्रसंग अच्छे कार्यों का पथ प्रशस्त करेंगे। --उपाध्याय अमरमुनि [ चार ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 166