Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 4
________________ स्वस्ति - वचन संसार का प्रत्येक प्राणी जीवन जीता ही है। किन्तु, यथार्थ में जिसे जीवन जीना कहते हैं, वह जीवन तो विरले सौभाग्यशाली आत्माओं को ही प्राप्त होता है। सिर्फ शरीर की सीमा तक अवरुद्ध रहना केवल जड़ शरीर का ही जीवन है। उदात्त जीवन वह है, जो चित्त स्वरूप आत्मा की ज्ञान - ज्योति के प्रकाश में जीता है । यह जीवन अपने ही भोगों एवं आकांक्षाओं तक सीमित नहीं रहता, अपितु अन्तरंग आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करता है और वहाँ दया, करुणा, सेवा. सज्जनता एवं शालीनता आदि सद्गुणों के अद्भुत सौरभ से सुरभित होता है। मूलतः मन्दसौर के वासी अनन्तर जयपुर प्रवासी श्री प्रेमचन्दजी लोढ़ा एवं उनका परिवार उक्त दूसरे प्रकार के जीवनजीने का अभ्यासी है । मध्यम श्रेणी का परिवार रहा है,लोक-दृष्टि से, किन्तु वह यथार्थ दृष्टि से उत्तम श्रेणी का जीवन है। सहज भाव से आध्यात्मिक - वृत्ति रूप में शालीनता से रहना और सेवा करना, उक्त परिवार का एक श्लाघनीय गुण है । किसी प्रकार की कुटिलता नहीं, आडम्बर नहीं, इधर - उधर प्रचार • प्रसार नहीं, मौन - भाव से सेवा के पथ पर गतिशील रहना ही एक मात्र प्रस्तुत परिवार का लक्ष्य रहा है। यह मेरा परोक्ष नहीं, अपितु प्रत्यक्ष अनुभव है। श्री लोढाजी की धर्मपत्नी स्व.बादामकुंवर तो साक्षात सेवा की जीवन्त मूर्ति रही है । बादामकुवर सही अर्थ में धर्मपत्नित्व की उज्ज्वल प्रतीक रही है । समय पर सामायिक आदि धार्मिक क्रियाकाण्ड सही मनोभाव से करना और फिर पारिवारिक कार्य करते हुए भी सेवा में विना किसी ननु-नच के पति का साथ देना, स्वयं [ तीन ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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