Book Title: Chintan Vaibhav Author(s): Basant Bramhachari Publisher: Bramhanand Ashram View full book textPage 2
________________ ॥ नमामि गुरु तारणम् ॥ चिंतन वैभव (चिंतनशील विचारों की सूत्रावली) * वन्दे श्री गुरु तारणम् * चिंतन वैभव चिंतामणि रत्न धन धरा का है, धरा पर ही धरा रह जायेगा। मुही बांधे आया है तू, कर पसारे जायेगा । माया की गति छाया जैसी, धरै चले तो धावे। ताहि छोड जो भाग चले तो, पीछे पीछे आवे ।। जीव अकेला आया है, और अकेला जायेगा। जैसी करनी यहां कर रहा, वैसा ही फल पायेगा। जब तक अटपट में रहे, तब तक खटपट होय। जब मन की अटपट मिटे, झटपट दर्शन होय ।। पुण्य पाप तज निज भजो, आतम गुण रुचि लाय। सम्यकदर्शन के उदय, अजर अमर हो जाय ।। सदगुरु तारण तरण का, यह संदेश महान । ध्याओ निज शुद्वात्मा, करी आत्म कल्याण ।। 'आराम' अगर चाहे, आ 'राम' की तरफ । फन्दे में फंसना चाहे, जा दाम की तरफ ।। देवत्व का रहता सदा, चैतन्य में ही वास है। कैसे मिले वह अचेतन में, जो स्वयं के पास है। नव द्वारों का तन है पिंजरा, चेतन इसमें रहता। उड जाये तो क्या अचरज है, अचरज कैसे रहता। अनहद नाद सुहावनों, आतम नाद कहाय । बजै अनाहत कमल में, गुप्ति गहर सुखदाय ॥ :लेखक: ब्र.बसन्त :अनुवादक एवं संपादक: पं.ईश्वरचंद्र गोयल छिंदवाड़ा (म.प्र.) :प्रकाशक एवं प्राप्तिस्थल: ब्रह्मानंद आश्रम संत तारण तरण मार्ग, मंगलवारा पिपरिया (होशंगाबाद) म.प्र. मूल्य १0/ [ IChintan Vaibhawa चिंतन वैभव [11Page Navigation
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