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१४. श्रीमदूविजयानंदसूरि कृत, घोल्यो ॥ स ॥२॥ बिना सरधान के ज्ञान नहीं होत है ज्ञान बिन त्याग नहीं होत साचो । त्याग बिन करमका नास नहीं होत है करम नासे बिना धरम काचो ॥ तत्त्व सरधान पंचंगी संमत कह्यो स्यादवादे करी बैन साचो॥ मूल नियुक्ति अति नाष्य चूरण जलो वृत्ति मानो जिन धर्म राचो ॥ स॥३॥ उत्सर्ग अपवाद अपवाद उत्सर्ग उत्सर्ग अपवाद मन धार लीजो। अति उत्सर्ग उत्सर्ग है जैन में अति अपवाद अपवाद कीजो । ए षड जंग है जैन बाणी तने सुगुरु प्रसाद रस घुट पीजो। जब लग बोध नहीं तत्त्व सरधानका तब लग ज्ञान तुमको न बीजो ॥ सु ॥४॥ समय सिकांतना अंग साचा सबी सुगुरु प्रसादश्री पार पावे । दर्शन शानचारित करी संयुता दाह कर कर्मको मोख जावे । जैन पंचंगीकी रीति नांजी सबी