Book Title: Chaturharavali Chitrastava
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ 2 July 2002 आनुपूर्वी अने पश्चानुपूर्वीना सुमेळमां १२मा पद्यमा १२ मा अने १३मा भगवाननां नाम अने स्तवन आवी जाय. आ उपरथी ९६ जिननां नामों क्रमशः आम गोठवी शकाय : १. प्रथम स्तोत्र गत वर्तमान २४ जिन : ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुंथु, अरपति, मल्लि, (मुनि) सुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व, महावीर २. - द्वितीयस्तोत्रगत अतीत २४ जिन : केवलज्ञानी, निर्वाणी, सागर, महायशः, विमल, सर्वानुभूति श्रीधर दत्तदेव, दामोदर, सुतेज:, श्रीस्वामी, मुनिसुव्रत, सुमति, शिवगति, अस्ताव, नमीश्वर, अनल, यशोधर, कृतार्थ जिनेश्वर, शुद्धमति, शिवकर, स्पंदन, संप्रति तृतीयस्तोत्रगत अनागत २४ जिन: पद्मनाभ, सूरदेव, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, सर्वानुभूति, देवश्रुत, उदय, पेढाल, पोट्टिल, सितकीर्ति, सुव्रत, अमम, निष्कषाय, निष्पुलाक, निर्मम, चित्रगुप्त, समाधि, संवर, यशोधर, विजय, मल्लदेव, देवदेव, अनंतवीर्य, भद्रकृत्. चतुर्थ स्तोत्रगत २० विहरमाण तथा ४ शाश्वत जिन :- सीमंधर, युगंधर, युगबाहु, सुबाहु, सुजात, वृषभानन, विशाल, रविप्रभ, स्वयंप्रभ, अनन्तबल, चन्द्रानन, वज्रधर, भुजंग, वीरासन, चन्द्रबाहु, नेमिप्रभ, ईश्वर, अजित, देवयशा, महाभद्र, ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण, वर्धमान. आ श्लोकोमा चार चरणना प्रथम अक्षरोना संयोजनथी तीर्थंकरसुं नाम रचाय, अने तेवी ज रीते चारे चरणना अंतिम अक्षरोना संयोजनथी पण नाम बनी जाय, ते रोते पदरचना करवानी होवाथी आ शब्दप्रधान रचना बने छे, अने ते कारणे ज अर्थ- गांभीर्य न अनुभवाय तो ते समजी शकाय तें छे; सह्य छे. आ ज कारणे कविए उपजाति छंद पसंद कर्यो जणाय छे. तीर्थंकरोनां नामो क्यारेक ओछा-वधता अक्षरोना होय छे, तो ते वधाराना अक्षर पछीना पद्यमां गोठवेल छे, अने ओछा अक्षर थता होय त्यां पछीना नामनो अक्षर गोठवीने कार्य निर्वाह थयो छे, तेवुं पण जोवा मळे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 29