Book Title: Chaturharavali Chitrastava Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ आगमिक श्री जयतिलकसूरिकृतो सवृत्तिकः चतुर्हारावली चित्रस्तवः ॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरिः मध्यकालीन जैन कविओए संस्कृत भाषामां चित्र-विचित्र प्रकारनी असंख्य रचनाओ करी छे. एमां जेटली प्रकाशित छे ते करतां अप्रकाशित रचनाओनो जथ्थो बहु मोटो छे. अनुसन्धान'ना माध्यमथी आवी थोडीक कृतिओ पण संस्कृतज्ञोना हाथमां पहोंचाडवानो अदनो प्रयास छे. 'चतुर्हारावलीचित्रस्तव' नामनी एक लघु रचना अहीं आपवामां आवी छे. आमां १४ पद्योनो एक एवा चार 'हार' नी रचना थई छे. प्रत्येक हारमा १२ रत्नो, १९३मा पद्यरूप १ नायक / मुख्य रत्न (पेन्डन्ट) के मध्यमणि, अने लटकता रत्त्रपुष्पसमान १४मुं पद्य - आम योजना जोवा मळे छे. तमाम पद्यो चित्रकाव्यरूप छे, तेमां पण मध्य-मणिरूप ४ पद्यो तो चित्र बन्ध काव्यात्मक छे. आ स्तोत्रोमा कविने जैन परंपराने मान्य एवा ९६ तीर्थंकरोनां नामो गुंथवापूर्वक स्तवना करवानुं अभिप्रेत छे. प्रत्येक पद्यमां बे तीर्थंकरोनां नामो वणी लीधां होई १२ पद्योमां २४ तीर्थंकरो समाई गया छे. ९६ जिननी समजूती आ प्रमाणे छे : भरतक्षेत्रमां थयेल ऋषभदेवथी महावीरस्वामी सुधीना, वर्तमान समयना २४ तीर्थंकरोनी गुंथणी प्रथम हारस्तवमां; अतीत (भूत) काळमां थयेला केवलज्ञानीथी संप्रतिजिन सुधीना २४ जिनेश्वरोनी गुंथणी बीजा स्तवमा आगामी (भविष्य) काळमां थनारा पद्मनाभथी भद्रकृत सुधीना २४ जिननी गुंथणी त्रीजा स्तोत्रमां अने हालमां महाविदेह क्षेत्रोमां विहरी रहेला ( विहरमाण) सीमन्धरस्वामी आदि २० तथा जैन परंपरामां शाश्वतजिन तरीके ओळखाता - ४ एम २४ जिननी गुंथणी चतुर्थस्तोत्रमां करवामां आवी छे. कविए क्रम पण मजानो गोठव्यो छे. प्रथम अने चोवीशमा ए बे जिन प्रथम श्लोकमां; बीजा अने त्रेवीशमा जिन बीजा श्लोकमां; एम Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.orgPage Navigation
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