Book Title: Chaitanya Chamatkar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ १२ चैतन्य चमत्कार उत्तर : कौन कहता है, नहीं मानते ? नहीं मानते तो ये हजारों लोग बम्बई जैसी मायानगरी में छब्बीस-छब्बीस दिन तक लगातार भरी दोपहरी में क्यों भागे आते हैं, समय के पहिले । हमारी बात तो लाखों लोग सुनते हैं, समझते हैं, पढते हैं. मानते भी हैं। यह तो तत्त्वप्रचार का काल पका है, तुम जैसे लोग पक गए हैं। प्रश्न : मेरा आशय यह था किसबलोग क्यों नहीं मानते? उत्तर : सब तो भगवान की भी नहीं मानते थे । यदि मान जाते तो संसार में ही क्यों रहते । भाई ! सुनने वाले की भी तो पात्रता होती है। मानना, नहीं मानना, सुनने वाले की पात्रता पर निर्भर करता है। जो मानते हैं वे अपने कारण और जो नहीं मानते वे भी अपने कारण । दोनों में ही हमारा क्या है ? प्रश्न : आपने कहा कि हजारों लोग सुनते हैं। आत्मा की इतनी सूक्ष्म बात बीस-बीस हजार जनता की समझ में क्या आती होगी? उत्तर : क्यों नहीं आती होगी? सभी आत्मा हैं, भगवान हैं। जब आठ वर्ष की बालिका को सम्यग्दर्शन हो सकता है तो...... । न सही पूरा, कुछ न कुछ तो आता ही होगा, तभी तो प्रतिदिन आते हैं। फिर हमारी भाषा तो सादी है, चैतन्य चमत्कार भाव अवश्य कठिन हैं, पर इसके समझे बिना कल्याण भी तो नहीं। हमको क्या? हमारे पास तो यही बात है और लाएँ भी तो कहाँ से । संसार से छूटने की बात तो यही है, इसे जाने बिना कल्याण नहीं। प्रश्न : समाज में सर्वत्र दो दल हो गये हैं। यदि थोड़े आप झुकें और थोड़े वे तो समझौता हो सकता है। उत्तर : भाई धर्म में समझ का काम है, समझौते का नहीं। धर्म तो वस्तु के स्वभावको कहते हैं। वस्तु का स्वभाव तो जो है सो है, उसे समझना है, उसमें समझौते की गुंजाइश कहाँ है ? हम तो किसी से लड़ते ही नहीं. फिर समझौते की बात कहाँ है ? आत्मा को समझना ही सच्चा धर्म है। “यह प्रश्न जो आपसे किए हैं और उनके उत्तर जो आपने दिए हैं, उन्हें जन-जन की जानकारी हेतु आत्मधर्म में दिया जाएगा।" मेरे यह कहने पर कहने लगे - "हम इसमें कुछ नहीं जानते, तुम्हारी बात तुम जानो। हमसे तो तुमने जो पूछा उसके बारे में जो कुछ कहना था, कह दिया। हमारे पास तो अकेले में भी यही बात है और खुली सभा में भी यही बात है। क्या रखा है इन सब बातों में ? आत्मा का अनुभव सबसे बड़ी चीज है। मनुष्य भव की सार्थकता आत्मानुभव में ही है।" (8)

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