Book Title: Chaitanya Chamatkar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 27
________________ चैतन्य चमत्कार समझने का यत्न करते हैं, उन्हें उनके कारण स्वयं समझ में आ जाता है। जो यत्न नहीं करते, उनकी समझ में नहीं आता है। हम तो निमित्तमात्र हैं। रही बात यह कि हम क्यों समझाते हैं ? क्यों प्रवचन करते हैं ? सो भाई ! बात यह है कि यह जानते हुए भी कि हम किसी को समझा नहीं सकते, समझाने का भाव आए बिना नहीं रहता । हमारी ही क्या समस्त ज्ञानियों की यही दशा है। आचार्यों को भी यही श्रद्धा थी, फिर भी उन्हें समझाने का भाव आये बिना रहा नहीं। यदि ऐसा न होता तो सम्पूर्ण जिनागम की रचना कैसे होती? फिर तो देशनालब्धि भी न रहती।" "देशनालब्धि के बिना तो सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति ही नहीं होती?" “यह बात ठीक है कि सम्यग्दर्शन के पूर्व देशनालब्धि होती है, पर देशनालब्धिसे सम्यग्दर्शन होता है, यह बात नहीं; क्योंकिदेशनालब्धि तो निमित्ततात्र है। चार लब्धियाँ तोअनेक बार प्राप्त हुईं, पर सम्यग्दर्शन नहीं हुआ। पाँचवीं करणलब्धि हो तो नियम से सम्यग्दर्शन होता है। करणलब्धि उपादानरूप है, अत: कार्य का नियामक तो उपादान ही रहा है।" "तो क्या आप निमित्त को नहीं मानते?" "निमित्त को निमित्त मानते हैं, निमित्त को कर्त्ता नहीं मानते । कर्ता वह है भी नहीं। कर्त्ता की व्याख्या आचार्य अमृतचन्द्र ने इसप्रकार दी है - वह तो नाममात्र का भी जैन नहीं यः परिणमति स कर्ता। जो कार्यरूप स्वयं परिणमित हो, उसे कर्ता कहते हैं। उपादान स्वयं कार्यरूप परिणमित होता है; अत: वास्तविक कर्त्ता तो वही है।" "कहीं-कहीं निमित्त को भी कर्ता कहा है न?" "निमित्तकोभीव्यवहारसेक कहा जाता है। वास्तविक कर्ता उपादान ही है। जहाँ निमित्त को कर्त्ता कहा हो, उसे व्यवहारनय से किया गया उपचरित कथन जानना चाहिए।" "आपकी आत्मा की बात है तो बहुत अच्छी, पर है बहत कठिन?' “कठिन तो है, पर अशक्य नहीं। यदि कोई पुरुषार्थ करे तो समझ में आ सकती है।" “जनसाधारण की समझ मे आना तो सम्भव नहीं ?" "क्यों नहीं ? वे भी तो आदमी हैं। कठिन हैं, पर इतनी नहीं कि आदमी की भी समझ में न आये । भगवान तो कहते हैं कि प्रत्येक सैनी पंचेन्द्रिय को आत्मज्ञान हो सकता है, चाहे वह किसी भी गति में क्यों न हो? मेरी समझ मेंनआवेगी - ऐसामानकर किसी को भी उदास नहीं होना चाहिए। अनंत दु:खों को मेटनेवाली, संसार-सागर से पार उतारनेवाली बात तो एकमात्र आत्मा की ही बात है। यद्यपि प्रत्येक गृहस्थ का जीवन पूर्ण सदाचारमय होना (27)

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