Book Title: Chaitanya Chamatkar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ चैतन्य चमत्कार लगभग छत्तीस वर्ष से विराजमान है और तबतक रहेगी जबतक मन्दिर है। सभी प्रतिदिन अन्य सभी मूत्तियों के समान उसकी पूजन-वंदना करते हैं। अंतरिक्ष पार्श्वनाथ शिरपुर में पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति की हमारे हाथ से प्रतिष्ठा हुई है। उस पर अंकन्यास विधि हमने अपने हाथ से की है। उस प्रतिष्ठा की फिल्म भी बनी थी। वह वहाँ सुरक्षित होगी। तुम उसे आज भी देख सकते हो। बाहबली की बेलवाली मूर्ति के बारे में भी यही बात है। हम तीन-तीन बार बाहुबली की यात्रा के लिए गये हैं। वहाँ उनकी पूजन-वंदना की है। फणवाली पार्श्वनाथ की और बेलवाली बाहुबली की प्रतिष्ठित मूत्तियाँ अन्य प्रतिष्ठित मूर्तियों के समान ही पूज्य हैं।" "यदि ऐसी बात है तो फिर आप उन्हें विसर्जन करने की प्रेरणा क्यों देते हैं ?" "कौन देता है ? कब दी? तुम भी गजब करते हो? हमने तो आजतक किसी को कुछ नहीं कहा। विसर्जन की बात तो हम सोच भी नहीं सकते।" "सुना है, कहीं विसर्जित कर दी गई हैं?" "नहीं, हमने तो नहीं सुना । ऐसा महान पाप कोई जैनी तो नहीं कर सकता। अधिक हम क्या कहें?" "समाज वैसे ही अनेक पंथों में बटा हुआ है, जैसेतेरापंथ, बीसपंथ, तारणपंथ, गुमानपंट आदि । फिर आप हम तो उनके दासानुदास हैं। ३९ क्यों नया पंथ चला रहे हैं ?" "हमने तो कोई नया पंथ नहीं चलाया और न चला रहे हैं। हमारा तो पंथ एक ही है और वह आचार्य कुन्दकुन्द का 'सत्यपंथ निर्ग्रन्थ दिगम्बर'। जो कुन्दकुन्दाम्नाय का मूल दिगम्बर मार्ग है, हमने तो उसी को बुद्धिपूर्वक स्वीकार किया है, उसी पर चल रहे हैं। हमने कोई नया मार्ग नहीं पकड़ा। अनादिनिधन जो मूल मार्ग है, वही हमारा मार्ग है। ____ जिस पथ पर परमपूज्य आचार्य कुन्दकुन्द, अमृतचंद्र, भूतबलि, पुष्पदन्त, नेमिचन्द्र चले, बनारसीदासजी और टोडरमलजी चले, उसी पर हम चल रहे हैं, वही हमारा पंथ है।" "आपकी प्रासुक पूजनपद्धति, क्षेत्रपाल-पद्मावती आदि को नहीं पूजना, मात्र जल से अभिषेक करना आदि क्रियाएँ तो शुद्ध तेरापंथ आम्नाय से मिलती हैं ?" "अरे भाई ! तुम कहाँ पंथ की बात ले बैठे ? ये तो मूल दिगम्बर धर्म की बातें हैं। ये सब भूमिकानुसार सद्गृहस्थ के होती ही हैं, मूल बात तो आत्मा के अनुभव की है। जब तक आत्मा नहीं जाना, तब तक सब क्रियाकाण्ड अंक बिना बिन्दी के समान है।" "आत्मा के अनुभव की बात तो मूल है ही, पर सामाजिक शान्ति भी तो आवश्यक है ?" "क्यों नहीं ? पर सामाजिक शान्ति का उपाय भी (21)

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38