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वह तो नाममान का भी जैन नहीं
चैतन्य चमत्कार कुछ। इसकी ओर देखते रहोगे तो अमूल्य मनुष्यभव यों ही चला जायेगा और फिर पता ही न चलेगा कि चौरासी लाख योनियों में कहाँ गये।
अच्छा-बुरा वातावरण तो तात्कालिक चीज है। समय पर सब स्वयं ठीक हो जाता है। इसकी अधिक चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं । सबको अपना स्वाध्याय, अध्ययन, मनन, चिंतन शान्ति से करते रहना चाहिए।"
“पहिले भी धार्मिक व सामाजिक परिस्थितियों पर आपके द्वारा व्यक्त विचारों को जानकर धार्मिक समाज को बहत शान्ति व शक्ति मिली थी। इन विचारों को भी मैं
आत्मार्थी बन्धुओं व धार्मिक समाज तक आत्मधर्म के माध्यम से पहुँचा दूंगा। इससे समाज को शान्त व स्वाध्यायरत रहने में मार्गदर्शन प्राप्त होगा, शक्ति प्राप्त होगी।"
"तुम्हारी बात तुम जानो" कहते हुए गुरुदेव स्वाध्यायरत हो गये और मैं भी उनके प्रति अत्यन्त आभार व्यक्त करते हुए नमस्कार कर चल दिया। ( चैतन्य की मस्ती में मस्त मुनि को देखते हुये गृहस्थ को ऐसा भाव आता है कि अहा ! रत्नत्रय साधनेवाले संत को शरीर की अनुकूलता रहे - ऐसा आहार औषध देऊँ, जिससे वह रत्नत्रय को निर्विघ्न साधे। ऐसे मोक्षमार्गी मुनि को देखते ही श्रावक का हृदय बहमान से उछल पड़ता है। - आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजीस्वामी)
"स्वामीजा खाआ, पीओ और मौज उड़ाओ' के सिद्धांतों का प्रचार कर रहे हैं।" - आदि न जाने कैसीकैसी बे-सिर-पैर की अफवाहें आजकल निहितस्वार्थी लोगों द्वारा बुद्धिपूर्वक फैलाई जा रही हैं।
उक्त संदर्भ में स्वामीजी के विचार समाज तक पहुँचे - इस पवित्र भावना से सम्पादक आत्मधर्म द्वारा कुरावड़ (राजस्थान) में पंचकल्याणक के अवसर पर दीक्षा कल्याणक के दिन दि. १८.५.१९७८ को पूज्य स्वामीजी से लिया गया यह पाँचवाँ इन्टरव्यू आत्मधर्म के जिज्ञास पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है।
"जो मद्य-मास-मधु का सेवन करता है, जिनमें अगणित त्रस जीव पाये जाते हैं - ऐसे पंच उदुम्बर फलों को खाता है; वह तो नाममात्र का भी जैन नहीं, जिनवाणी सुनने का भी पात्र नहीं।"
उक्त शब्द पूज्य स्वामीजी ने तब कहे जब उनसे पछा गया कि “आप तो कहते हैं कि आत्मा के अनुभव के बिना
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