Book Title: Chaitanya Chamatkar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 22
________________ चैतन्य चमत्कार आध्यात्मिक वातावरण ही है। यदि समाज में पूर्णत: आध्यात्मिक वातावरण रहे तो फिर अशान्ति होगी ही नहीं।" “यह बात तो पूर्णत: सत्य है कि आपके द्वारा दिगम्बर जैन समाज को एक आध्यात्मिक वातावरण प्राप्त हुआ है। सौराष्ट्र में जहाँ दिगम्बर जिनमन्दिरों के दर्शन दुर्लभ थे, वहाँ आज पद-पद पर विद्यमान विशाल दिगम्बर जिनमंदिरों के दर्शन कर चित्त प्रफुल्लित हो जाता है। आपने लाखों नये दिगम्बर जैन बनाए हैं। लाखों जन्मजात दिगम्बरों को भी दिगम्बर धर्म का मूल तत्त्व बताकर सन्मार्ग में लगाया है। चारों अनयोगों के दिगम्बरजिनशास्त्रों को बीस लाख से भी अधिक प्रतियों में प्रकाशित कराके अत्यल्प मूल्य में घर-घर पहुँचा दिया है । सैकड़ों आत्मार्थी विद्वान तैयार कर दिये हैं। यद्यपि समाज का एक बहत बडा भाग आपके इस महान उपकार को स्वीकार करता है, आपके प्रति अत्यन्त वात्सल्य एवं बहुमान भाव रखता है; तथापि कुछ लोग न जाने क्यों आपका विरोध करते हैं और अत्यन्त शान्तिप्रिय धार्मिक समाज का वातावरण अशान्त करने पर तुले हुए हैं। क्या इस सम्बन्ध में आप कुछ कहना चाहेंगे?" “नहीं, इस संबंध में हमें कुछनहीं कहना है। हम क्या कहें, जिसकी जैसी होनहार होगी, उसका वैसा ही परिणमन होगा। ___ हमने किसी का कुछ नहीं किया है। जिन्हें सन्मार्ग प्राप्त हुआ है, वह उनको उनकी योग्यता-पात्रता से प्राप्त हुआ है, हम तो उनके दासानुदास हैं उसमें हमने कुछ नहीं किया है। तथा जिन्हें द्वेष जगता है, वह भी उनकी अपनी स्वयं की योग्यता से है, उसके कारण भी हम नहीं हैं। हम तो अपनी परिणति के कर्ता-धर्ता हैं, दूसरों की परिणति के नहीं। कोई भी द्वेष या घृणा का पात्र नहीं है। सबसे ममता भाव रखना ही ज्ञानी का काम है। रही तत्त्वप्रचार की बात । सो यह तत्त्वप्रचार का काल पका है। सबकी होनहार अच्छी है, सो हो रहा है। इसमें हमारा क्या? हमारी तो यही भावना है, सब भगवान महावीर एवं कुन्दकुन्दादि आचार्यों के बताये सन्मार्ग पर लगें और अपनी अनन्त निधि को प्राप्त कर अनन्त सुखी हों।" "वर्तमान वातावरण के संदर्भ में आत्मार्थी बन्धओं एवं दिगम्बर जैनसमाज को क्या आप कोई आदेश या सन्देश देना चाहेंगे? यदि आपका कोई आदेश या सन्देश या मार्गदर्शन समाज को प्राप्त हो जाय तो बड़ा उपकार होगा।" "भाई ! हम तो किसी को आदेश देते ही नहीं, धर्म मार्ग में आदेश का क्या काम ? रही बात सन्देश की सो हमारा तो सदा ही और सभी को एक ही सन्देश है कि अनुकूल-प्रतिकूल समस्त जगत पर से दृष्टि हटाकर एकमात्र ज्ञायकस्वभावी आत्मा की ओर दृष्टि ले जावो, उसी का अनुभव करो, उसी में जम जावो. उसी में रम जावो - यही एकमात्र सुख-शान्ति प्राप्त करने का अमोघ उपाय है।" यह दुनिया तो ऐसे ही चलती रहेगी, कभी कुछ, कभी (22)

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