Book Title: Chaitanya Chamatkar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 12
________________ चैतन्य चमत्कार प्रश्न : कुछ लोग तो कहते हैं कि उसमें व्यभिचार का पोषण है? उत्तर : जिन्हें परलोक का भी भय नहीं है, उन्हें कौन समझाए ? जरा विचार तो करो, जो स्वयं ब्रह्मचारी क्षुल्लक हो, क्या वे व्यभिचार का पोषण करेंगे? उन्हें इसमें क्या लाभ था ? यह तो इन सब की बुद्धि की बलिहारी है, जो इतनी अच्छी पुस्तक में से यह भाव निकाला। और हम भी तो बाल ब्रह्मचारी हैं। ७८ वर्ष की उमर है. तथा यहाँ के आध्यात्मिक वातावरण से प्रभावित होकर ६४ सम्पन्न घरानों की पढ़ी-लिखी नई उमर की बहनें आजीवन ब्रह्मचर्य लेकर यहाँ रहती हैं। अनेक भाइयों ने भी आजीवन ब्रह्मचर्य लिया। अधिक क्या कहें ? अनेक दम्पत्ति भी यहाँ ब्रह्मचर्य लेकर रहते हैं और तत्त्व अभ्यास करते हैं। जरा विचार तो करो जो क्षुल्लक धर्मदासजी उसी सम्यग्ज्ञानदीपिका में पृष्ठ नं. ५२ पर यह लिख रहे हैं कि - "जैसे कोहूऽस्त्री अपणा स्वभर्तार कू त्यजकरिकै अन्य पुरुष की सेवा रमण आदि कर्ती है सोऽस्त्री व्यवचारिणी मिथ्यात्णी है; तैसे ही कोहू अपणा आपमै आपमयि स्वसम्यक्-ज्ञानमयि देव कू त्यज करिकै अज्ञानमयि देव की सेवा भक्ति मै लीन है सो मिथ्याती है।" सम्यग्ज्ञानदीपिका वे व्यभिचार का पोषण कैसे कर सकते हैं ? प्रश्न : पर उसमें एक जगह तो स्पष्ट ही व्यभिचार का पोषण किया है ? उत्तर : तुमने पढ़ा है ? निकालो, देखो क्या लिखा है ? जब मैंने सम्यग्ज्ञानदीपिका की बहुचर्चित पंक्तियाँ इसप्रकार पढ़ीं "जैसे जिस स्त्री का शिर के ऊपर भरतार है स्यात् सो स्त्री परपुरुष का निमित्त सै गर्भ बी धारण करै तो ताकू दोष लागते नाहीं।" तब वे कहने लगे - पूरा तो पढ़ो अकेला दृष्टान्त क्यों पढ़ते हो ? साथ में द्राष्टान्त भी पढ़ो। तुम तो विद्वान हो, इतना भी नहीं जानते कि जो वाक्य 'जैसे' से आरम्भ होता है, वह 'वैसे' बिना समाप्त नहीं होता। क्षुल्लक धर्मदासजी ने सम्यग्ज्ञानदीपिका 'स्त्रीचरित्र' समझाने को नहीं बनाई थी। उन्होंने तो आत्मा का अनुभव कैसे हो और आत्मानुभवी की दशा कैसी होती है, बताने के लिए इसे बनाया है। स्त्री का तो मात्र दृष्टान्त दिया है, सिद्धान्त तो आगे है, उसे पढ़ो। जब मैंने आगे इसप्रकार पढ़ा कि - "तैसे ही किसी पुरुष का मस्तक सै तन्मयि मस्तक के (12)

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