Book Title: Chahdhala Author(s): Maganlal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 5
________________ श्रीसद्गुरुदेवाय नमः अध्यात्मप्रेमी कविवर पण्डित दौलतरामजी कृत छहढाला (सुबोध टीका) ܘܘ܂ܘܘܟ प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करनेवाले दातारों की सूची १. गुप्तदान हस्ते राजेन्द्रकुमार पंकजकुमारजी झालानी ७५०.०० पुष्पाबाई की स्मृति में, कुबड़ोद २. श्री अमोल विनयकुमारजी मेहता, बीजापुर ५१०.०० ३. श्री महिला मुमुक्षु मण्डल, बाँरा ५००.०० ४. अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, बारा ५००.०० ५. श्री रतनमाला सोनी उदयपुरवाले, जयपुर ५००.०० ६. श्री सनतकुमारजी जैन, भोपाल ५००.०० ७. श्री सुरेन्द्रकुमारजी जैन, एडवोकेट, जयपुर ५००.०० ८. श्रीमती कमलाबाई श्रीपालजी बड़जात्या, इन्दौर ९. श्रीमती कुंदाबाई सा., इन्दौर ५००.०० १०. श्रीमती कुसुम जैन ध.प. विमलकुमारजी जैन, 'नीरू केमिकल्स', दिल्ली ५०१.०० ११. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज २५१.०० १२. स्व. बाबूलाल तोतारामजी जैन, भुसावल २५१.०० १३. श्रीमती पतासीदेवी इन्द्रचन्दजी पाटनी, लाडनूं २५१.०० १४. श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत २५१.०० १५. कु. कुसुम जैन, बाहुबली, कुम्भोज २५१.०० १६. श्री धर्मेन्द्रकुमार नवीनकुमार जैन, दिल्ली २५०.०० १७. श्रीमती श्रीकान्ताबाई ध.प. पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर २०१.०० १८. श्रीमती नीलू ध.प. राजेन्द्रकुमार मनोहरलाल काला, इन्दौर २०१.०० १९. श्रीमती पतासीदेवी मनोहरलालजी सेठी, गौहाटी १५१.०० २०. स्व. धापूदेवी ध.प. स्व. ताराचन्दजी गंगवाल, जयपुर की पुण्य स्मृति में १५१.०० २१. श्रीमती कंचनबाई दुलीचन्दजी जैन, खैरागढ़ १०१.०० कुल राशि ७,५७१.०० पहली ढाल - मंगलाचरण - (सोरठा) तीन भुवन में सार, वीतराग विज्ञानता। शिवस्वरूप शिवकार, नमहुँ त्रियोग सम्हारिकैं।।१।। अन्वयार्थ :- (वीतराग) राग-द्वेष रहित, (विज्ञानता) केवलज्ञान (तीन भुवन में) तीन लोक में (सार) उत्तम वस्तु (शिवस्वरूप) आनन्दस्वरूप [और] (शिवकार) मोक्ष प्राप्त करानेवाला है, उसे मैं (त्रियोग) तीन योग से (सम्हारिक) सावधानी पूर्वक (नमहुँ) नमस्कार करता हूँ। भावार्थ :- राग-द्वेषरहित “केवलज्ञान" ऊर्ध्व, मध्य और अधो - इन तीन लोकों में उत्तम, आनन्दस्वरूप तथा मोक्षदायक है, इसलिये मैं (दौलतराम) अपने त्रियोग अर्थात् मन-वचन-काय द्वारा सावधानी पूर्वक उस वीतराग (१८ दोष रहित) स्वरूप केवलज्ञान को नमस्कार करता हूँ।।१।। नोट:- इस ग्रन्थ में सर्वत्र ( ) यह चिह्न मूल ग्रन्थ के पद का है और [ ] इस चिह्न का प्रयोग संधि मिलाने के लिए किया गया है। (viii)Page Navigation
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